Tuesday, December 22, 2015

बाबाजी ने बचाई जिन्दगी

अल्मोड़ा में एक दिन दिवाकर पंत बहुत बुरी तरह बीमार हो गये। आधी रात होते होते उनकी हालत बहुत नाजुक हो गयी। पहाड़ में इतनी रात किसी डॉक्टर को बुलाना भी संभव नहीं था। सब सुबह होने का इंतजार कर रहे थे। उनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उनकी पत्नी रोते रोते बदहवास होकर गिर पड़ीं।

तभी उन्होंने महसूस किया जैसे महाराज जी उनका कंधा पकड़कर हिला रहे हैं और एक दवा की तरफ इशारा करते हुए कह रहे हैं कि "यह दवा दे दो। वह ठीक हो जाएगा। "

उन्हें यह सोचने का भी होश नहीं था कि अचानक बाबाजी कब आ गये? कमरे में उनके अलावा किसी और ने बाबाजी को देखा भी नहीं। वे उठीं और बाबाजी ने जिस दवा की तरफ इशारा किया था वह दवा पिला दी। दवा देते ही दिवाकर पंत के व्यवहार में अजीब सा बदलाव आ गया। वे हिंसक हो गये और अनाप शनाप बकने लगे। ऐसे लग रहा था जैसे उनके दिमाग का संतुलन बिगड़ गया है। सब उनकी पत्नी के व्यवहार को कोस रहे थे कि बिना जाने समझे उसने कौन सी दवा दे दी। खुद उनकी पत्नी को भी पता नहीं था कि उन्होंने कौन सी दवा दे दी है। उन्हें न दवा का नाम पता था और न डोज।

खैर, अगली सुबह डॉ खजानचंद आये। रोगी की जांच करने के बाद उन्होंने वह सब वाकया बड़े धैर्य से सुना जो रात में घटित हुआ था। उन्होंने कोरोमाइन नामक दवा की वह शीशी भी देखी जिसमें से रात में रोगी को उनकी पत्नी ने दवा पिलाई थी। सब सुनने के बाद उन्होंने दिवाकर पंत की पत्नी से पूछा, बेटी तुमने यह दवा क्यों दी?

मारे शर्म और अपराधबोध के वो कोई जवाब न दे सकीं। बस बुरी तरह रोये जा रही थीं। तब डॉक्टर ने उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा कि "यह दवा देकर तुमने अपने पति की जान बचा ली। उस वक्त सिर्फ यही एक दवा थी जो रोगी को दी जा सकती थी।" डॉक्टर ने कहा, अब वे ठीक हो जाएंगे। घबराने की कोई बात नहीं है।

#महाराजजीकथामृत

(रवि प्रकाश पांडे (राजीदा),  द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, (१९९५), पेज- १०७/१०८)

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🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा।। 🌺
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Tuesday, December 15, 2015

कंजूस का धन

बात 1966 की है। तब कैंची नदी पर इतना बड़ा पुल नहीं था। एक लकड़ी का छोटा सा पुल था। कई बार दोपहर में वे वहीं जाकर बैठ जाते थे और भोजन करते थे। पंद्रह जून के भंडारे से पहले एक दिन वे उसी पुल पर बैठे हुए थे कि बरेली से एक भक्त आये। ट्रक में। कुछ पत्तल और कसोरे (मिट्टी का बर्तन) साथ लाये थे भंडारे के लिए। उन्होंने वह सब वहां अर्पित करते हुए मुझसे कहा, "दादा बताइये और क्या जरूरत है?"

मेरे नहीं कहने के बाद भी वे बार बार यही जोर देते रहे कि बताइये और क्या चाहिए। बताइये और क्या चाहिए। उनके बहुत जोर देने पर मैंने कह दिया कि दो खांची (बांस का बना बड़ा बर्तन) कसोरे और भेज दीजिएगा।

तब तक बाबाजी चिल्लाये। क्या? क्या करने जा रहे हो तुम उसके साथ मिलकर? है तो सबकुछ। तुम बहुत लालची हो गये हो। कोई कुछ देना चाहे तो तुम तत्काल झोली फैला देते हो।"  मैं चुप रहा।

प्रसाद लेने के बाद जब वह व्यक्ति जाने के लिए तैयार हुआ और महाराजजी के पास उनके चरण छूने पहुंचा तो सौ रूपये का नोट निकालकर रख दिया। महाराजजी ने तत्काल वह सौ रूपये का नोट उसके सामने ही फाड़कर फेंक दिया। वह व्यक्ति बहुत खिन्न मन से वापस लौट गया।

उसके जाने के बाद महाराजजी ने कहा, "आप समझते नहीं हैं दादा। कंजूस का दिया धन या भोजन आपको स्वीकार नहीं करना चाहिए। हजम नहीं होगा। उस आदमी के पास बहुत पैसा है लेकिन दान पुण्य के लिए धेला भी खर्च नहीं करता है। मैं उसको बहुत अच्छे से जानता हूं।"

(सुधीर "दादा" मुखर्जी द्वारा अपने दोस्त को बताया गया एक वाकया।)

#महाराजजीकथामृत

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Tuesday, November 17, 2015

आंखों की रोशनी वापस आ गयी

एक बार इलाके के एक बुजुर्ग की दोनों आंखें चली गयी। उस वक्त वे बुजुर्ग महाराजजी के पास ही रह रहे थे। लोगों ने जब महाराजजी से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि "समर्थ गुरू रामदास ने अपनी मां के अंधेपन का इलाज किया था। दुनिया में ऐसा दूसरा संत नहीं है।" यह कहकर महाराजजी ने एक अनार मंगवाया और उसको मसलकर उसका जूस पी गये और उन्होंने अपने कंबल को अपने ऊपर ओढ़ लिया। उनकी आंखों से खून निकल रहा था। इसके बाद महाराजजी ने उस व्यक्ति से कहा कि तुम्हारी दृष्टि वापस आ जाए तो अपने व्यापार से रिटायर हो जाना और अपनी आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ना।

अगले दिन डॉक्टर आये और जब उन बुजुर्ग की आंखों का परीक्षण किया तो चौंक गये। उन्होंने कहा कि यह असंभव है। किसने किया यह? लोगों ने बताया महाराजजी ने। डॉक्टर ने पूछा कि वे अब कहां हैं तो लोगों ने बताया कि वे तो जा चुके हैं। डॉक्टर भागते हुए स्टेशन पहुंचे। महाराजजी ट्रेन में सवार हो चुके थे। डॉक्टर दौड़कर बोगी में पहुंच गये। डॉक्टर को देखते ही महाराजजी ने कहा, देखो ये कितने काबिल डॉक्टर हैं। इन्होंने उस बुजुर्ग व्यक्ति की आंख ठीक कर दी। ये बहुत अच्छे डॉक्टर हैं।

हालांकि तीन चार महीने बाद ही वे बुजुर्ग अपने आपको रोक नहीं पाये और काम पर वापस लौट गये। उसी दिन उनके आंखों की रोशनी फिर से चली गयी।

#महाराजजीकथामृत

(रामदास, मिराकल आफ लव, पहला संस्करण, 1979, पेज- 318)
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Saturday, November 14, 2015

गुरु भक्ति

एक दिन मैं महाराजजी से कुछ दूरी पर उनके सामने ही बैठा हुआ था। बहुत सारे भक्त उनके आसपास बैठे हुए थे। बात हो रही थी। हंसी मजाक चल रहा था। कुछ उनके पैरों की मालिश कर रहे थे। लोग उन्हें सेव और फूल दे रहे थे। वे उन चीजों को प्रसाद रूप में लोगों में वितरित कर रहे थे। सब तरफ प्रेम और करुणा बरस रही थी। लेकिन मैदान में कुछ दूरी पर मैं अलग ही अवस्था में बैठा हुआ था।

मैं सोच रहा था कि सब ठीक है लेकिन यह सब तो एक मूर्तरूप से जुड़ा प्रेम है। मैंने यह कर लिया अब मुझे इसके परे जाना है। वे कुछ खास नहीं हैं हालांकि वे सबकुछ हैं। मैं दुनिया में जहां कहीं भी हूं, उनके चरणों में हूं। मैं उनके साथ जिस अवस्था में जुड़ा हूं उसके लिए शरीर की मर्यादा का होना जरूरी नहीं है। जागृत अवस्था में हम एक हैं।

तभी मैंने देखा कि महाराजजी एक बुजुर्ग भक्त के कान में कुछ कह रहे हैं और वह बुजुर्ग भक्त भागकर मेरे पास आया और मेरे पैर छूकर खड़ा हो गया। मैंने पूछा, "आपने यह क्यों किया?" उन्होंने कहा, "महाराजजी ने कहा है। उन्होंने कहा कि मैं और वो एक दूसरे को अच्छे से समझते हैं।"

#महाराजजीकथामृत

(रामदास, जर्नी आफ अवेकनिंग, ई बुक, पेज- १२५)
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Saturday, November 7, 2015

छूटे प्राण वापस आ गये

करीब ४० वर्ष पूर्व मेरी पत्नी बहुत बीमार हो गयी ! बचने की कोई उम्मीद नही थी ! मेरे पास एक ही रास्ता था , बाबा का निरन्तर स्मरण! जब पता चला बाबा जी बरेली डाक्टर भण्डारी के घर आये है तो वहाँ भागा पर बाबा वहाँ न मिले। आठ बजे रात पेड़ के नीचे बैठा बाबा को याद करता रहा! तब एक व्यक्ति से पता चला कि बाबा जी कमिश्नर लाल साहेब के घर पर हैं। मै वहाँ पहँचा परन्तु चपरासी ने भीतर नही जाने दिया। मैं बाहर ही महाराजजी को दीनता से अंतरमन में पुकारता रहा और तभी बाबा जी बाहर निकल आये मेरी आर्त पुकार सुनकर और कहा, "रिक्शा ला तेरे घर चलते है!"

लाल साहब की गाडी पर बाबा नही बैठे ! रिक्शे से हम घर आ गये ! बाबा सीधे मेरी पत्नी के कमरे में पहुंचे और उनके पलंग के पास ही कुर्सी पर बैठ गये ! तभी उन्होने अपने चरण उठाकर पलंग पर रख दिये। पत्नी ने प्रयास करके किसी तरह अपना सिर बाबा के चरणों पर रख दिया, इसके साथ ही उनकी रही सही नब्ज भी छूट गयी। सब हाहाकार करके रो उठे पर बाबा जी चिल्ला कर बोले, "नहीं, मरी नही है, आन्नद में है !" और ऐसा कहकर पत्नी के गाल पर चपत मारी और उसकी नब्ज वापिस आ गई। तब रात १०.३० बजे बाबा ने हिमालया कम्बल माँगा। कम्बल आ गया, जिसे बाबा जी ने खुद ओढ लिया और अपना ओढा कम्बल पत्नी पर डाल कर चले गये।

बाबा दूसरे दिन फिर आये और पत्नी की नब्ज उनके चरण छूते फिर छूट गयी! तब बाबा बोले "माई हमे बहुत परेशान करती है! हमें बैठना पड़ जाता है !" और इसके बाद पत्नी बिना इलाज के पूर्णता: स्वस्थ हो गई!

(प्यारेलाल गुप्ता -- बरेली)

जय गुरूदेव
अनंत कथामृत

Tuesday, November 3, 2015

गंगाजी में बहता है दूध

माघ मेला में महाराजजी अपने भक्तों को बताते रहते थे कि गंगा में पानी नहीं दूध बहता है। एक दिन जब महाराजजी कुछ अन्य भक्तों के साथ गंगाजी में नौका यात्रा कर रहे थे तब कुछ भक्तों ने सोचा कि क्यों न महाराजजी की बात का परीक्षण किया जाए? हालांकि उन्होंने महाराजजी से कुछ नहीं कहा लेकिन महाराजजी ने खुद उनसे कहा कि एक लोटा गंगाजल भरकर ढंक दो। जब वह गंगाजल गिलास में डाला गया तो शुद्ध दूध बन चुका था। एक भक्त ने यह चमत्कार देखा तो सोचा कि थोड़ा सा दूध वह लेकर जाएगा और मेले में दूसरे भक्तों को भी दिखायेगा लेकिन महाराजजी ने गुस्से में उसके हाथ से दूध का वह गिलास छीनकर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया।

#महाराजजीकथामृत

(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण (1995, पेज- 114-15)

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🌺 !! कृपा करहु आवई सद्भावा !! 🌺
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Saturday, October 31, 2015

महाराजजी से लैरी ब्रिलियंट की पहली मुलाकात

(चेचक उन्मूलन के विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम का नेतृत्व करनेवाले लैरी ब्रिलियंट महाराजजी के कहने पर ही उस स्वास्थ्य महा अभियान में शामिल हुए थे। गूगल डॉट आर्ग के निदेशक रह चुके लैरी ब्रिलियंट के महाराजजी से मिलने की कहानी, उन्हीं की जुबानी)

मेरी पत्नी (गिरिजा ब्रिलियंट) महाराजजी से मिल चुकी थी और इब मुझे ले जाने के लिए अमेरिका लौटकर आयी थी। पहली बार जब मैं महाराज जी से मिला उसकी कहानी कुछ इस प्रकार है।

पश्चिम के मतवाले लोग एक बूढे से मोटे आदमी को घेरे हुए थे जिसने कंबल ओढ़ रखा था। मुझे यह देखकर बहुत नफरत हुई कि वहां मौजूद पश्चिमी लोग उस बूढ़े आदमी का पैर छू रहे थे। पहले दिन तो उन्होंने मेरे ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसी तरह एक दो तीन चार पांच छह नहीं पूरे सात दिन मेरी उपेक्षा करते रहे तो मैं काफी खिन्न हुआ। न मुझे वहां कुछ महसूस हो रहा था और उस बूढ़े आदमी के लिए मेरे मन में कोई मोहब्बत न थी। मैंने महसूस किया कि मेरी पत्नी किसी उन्मादी समूह में फंस गयी है इसलिए एक हफ्ते बाद ही मैं वापस लौटने की तैयारी करने लगा।

हम नैनीताल के एक होटल में ठहरे हुए थे। आठवें दिन मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। शाम को झील के किनारे टहलते हुए मुझे महसूस हुआ कि मेरी पत्नी किसी ऐसी जगह मशगूल हो गयी है जिसमें मैं शामिल नहीं हूं। ऐसे में निश्चित रूप से मेरा विवाह टूट जाएगा। मैंने फूल पेड़, पहाड़ झील सब की तरफ देखकर मन बहलाने की कोशिश की लेकिन मेरा डिप्रेशन कम होने का नाम नहीं ले रहा था। इसके बाद मैंने कुछ ऐसा किया जो जवानी में अब तक मैंने कभी नहीं किया था। मैंने प्रार्थना की।

मैंने भगवान से पूछा, मैं यहां क्या कर रहा हूं? यह आदमी कौन है जिसके लिए लोग इतने मतवाले हो गये हैं? तभी मेरे जेहन में आया कि विश्वास के लिए चमत्कार का होना जरूरी है। मैंने भगवान से कहा, ठीक है मुझमें कोई श्रद्धा नहीं है। आप चमत्कार कीजिए। मैं आकाश में इंद्रधनुष की तरफ देखने लगा। कुछ नहीं हुआ। मैंने तय किया कि अगले दिन मैं यहां से चला जाऊंगा।

अगले दिन विदा लेने के मन से हमने कैंची मंदिर जाने के लिए टैक्सी मंगवाई। मैंने मन में तय किया कि मैं महाराजजी को साफ बता दूंगा कि मुझे वे पसंद नहीं आये। हम सुबह सुबह जब कैंची पहुंचे तब तक वहां लोग नहीं आये थे। हम बरामदे में उनके तख्त के सामने बैठ गये। महाराजजी अभी कमरे से बाहर नहीं आये थे। तख्त पर कुछ फल रखा था जिसमें से एक सेब जमीन पर गिर गया था। मैं उसे उठाकर तख्त पर रखने के लिए झुका तभी महाराजजी बाहर आ गये। उन्होंने अपने हाथ को मेरे सिर पर रखा और जमीन की तरफ दबाव से झुका दिया। मेरे शरीर की ऐसी स्थिति बन गयी कि मैं घुटनों के बल झुककर उनके पैरों को छू रहा था। जबर्दस्ती। बिना किसी भाव के। यह सब कितना ऊटपटांग था। फिर उन्होंने मुझसे पूछा, "कल कहां थे? लेक पर थे?" उन्होंने लेक शब्द अंग्रेजी में कहा। जब उनके मुंह से मैंने लेक शब्द सुना तो मेरे पूरे शरीर में झुनझुनी सी दौड़ गयी। मैं बहुत अजीब महसूस कर रहा था। उन्होंने फिर मुझसे पूछा, "लेक पर क्या कर रहे थे?"

मैं स्तब्ध था। फिर उन्होंने खुद ही कहा, "घुड़सवारी कर रहे थे?"

"नहीं।"
"नौका चला रहे थे?"
"नहीं"
"तैराकी कर रहे थे?"
"नहीं"
फिर वो मेरी तरफ झुके और धीरे से बोले "भगवान से बात कर रहे थे?"

जब उन्होंने यह आखिरी वाक्य कहा तो मैं गिर पड़ा और बच्चे की तरह रोने लगा। उन्होंने मेरी दाढ़ी पकड़कर उठाते हुए कहा, "क्या तुमने कुछ मांगा?" यह मेरे लिए मेरी दीक्षा जैसा था।

तब तक और लोग वहां आने लगे थे। वे सब मुझे बड़े दुलार भाव से देख रहे थे। मुझे लगा आज जो मेरे साथ हो रहा है, इन लोगों के साथ पहले हो चुका है। एक तुच्छ सा सवाल "क्या कल तुम झील के किनारे गये थे?" जिसका किसी और के लिए कोई मतलब नहीं हो सकता था, उसने वास्तविकता की मेरी धारणा को छिन्न भिन्न कर दिया था। यह स्पष्ट हो गया था कि महाराजजी हर भ्रम के बीच सत्य को देखते हैं। वे सबकुछ जानते हैं। इसके बाद उन्होंने मुझसे पूछा, " क्या तुम एक किताब लिखोगे?"

यह मेरा स्वागत था। इसके बाद अब उनके पैरों को मैं अपने हाथ से दबाना चाहता था।

Sunday, October 25, 2015

प्रसाद लो

एक बार लखनऊ में महाराजजी ने नगर निगम के कुछ अधिकारियों को साथ लिया और सबसे गरीब मुहल्ले की तरफ सड़क नाली पानी की हालत देखने पहुंच गये। वहां पहुंचकर उन्होंने एक मुसलमान को अपने पास बुलाया और बोले- मुझे भूख लगी है।

मुसलमान ने कहा, लेकिन महाराजजी मेरे पास खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है।

महाराजजी ने कहा, "तूने घर के छप्पर में दो रोटी नहीं छिपा रखी है दुष्ट?"

उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि महाराजजी को कैसे पता चला? वह छप्पर में से दो रोटी निकाल लाया। एक रोटी महाराजजी ने खाई और दूसरी रोटी अधिकारियों को दे दी जिसमें हिन्दू ब्राह्मण भी थे। महाराजजी ने कहा, "प्रसाद लो।"

#महाराजजीकथामृत

(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण, 1995, पेज- 43-45)

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Monday, October 19, 2015

लंदन में महाराजजी का दर्शन

एक दिन मैं डबल डेकर बस से लंदन में यात्रा कर रहा था. मैं प्रवेश द्वार के पास ही बैठा हुआ था. बस का कंडक्टर ऊपरी डेक पर था. बस कमोबेश पूरी खाली थी. इतने में बस एक जगह रुकी और एक भिखारी बस में सवार हुआ. उसने चीथड़े पहन रखे थे और उसके हाथ में एक नीला और एक लाल कंबल था. वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और बहुत ही अच्छी मुस्कुराहट से मेरी तरफ देखने लगा. मानों वह मेरी बगल वाली सीट पर बैठना चाहता था. मैं एक तरफ खिसक गया और वह आदमी मेरी बगल में बैठ गया.

मैं अपना मुंह घुमाकर खिड़की की तरफ देखने लगा. खिड़की की तरफ देखते हुए मुझे उस बुजुर्ग आदमी के बारे में सोचते हुए मुझे उस बुजुर्ग आदमी की मोहक मुस्कान याद आ रही थी. अचानक मेरे मन में महाराजजी के बारे में विचार आने लगा. उनके बारे में सुन रखा था कि वे भी एक बुजुर्ग आदमी हैं जो कंबल रखते हैं. महाराजजी की याद आते ही मैंने उस बुजुर्ग को देखने के लिए अपना चेहरा घुमाया. अरे! वह बुजुर्ग तो गायब हो चुके थे.

रास्ते में बस भी कहीं नहीं रुकी थी इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता था कि वह बुजुर्ग कहीं उतर गये होंगे. पूरी बस में वे कहीं नजर नहीं आ रहे थे. पूरी सड़क भी खाली थी. उस बुजुर्ग भिखारी का कहीं कोई पता नहीं चला. मैं जानता था कि मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ लेकिन वह कहां चला गया?

अगले दिन मेरे कुछ मित्र मेरे पास आये और उन्होंने बताया कि बीते दिन सुबह (ठीक वही वक्त जिस वक्त बस मैं बस में था) उन्हें प्रेरणा मिली कि वे मेरे लिए टिकट की व्यवस्था करें और अपने साथ महाराजजी का दर्शन करने के लिए लेकर आयें. यह सब बहुत अटपटा था. हालांकि मेरे दोस्तों ने जो रकम आफर की थी वह अच्छी खासी थी लेकिन इतने से मेरे जैसे विद्यार्थी के लिए भारत जाने का पर्याप्त इंतजाम नहीं हो रहा था.

लेकिन अभी महाराजजी का एक चमत्कार होना और बाकी थी. इंग्लैंड में मेरे स्कूल से हर साल सेमेस्टर पूरा होने पर घर जाने का पूरा खर्चा मिलता था. मैंने इसके लिए आवेदन किया. लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मुझे उसकी दोगुनी रकम का चेक मिला जितना मैंने आवेदन किया था. मैंने इस बारे में स्कूल प्रशासन को बताया तो उन्होंने स्कूल का एकाउण्ट देखकर सूचित किया कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है. अंतत: मुझे अहसास हो गया कि महाराजजी मुझे दर्शन के लिए बुला रहे हैं.

एक महीने के भीतर मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर था जहां से मैं सीधे कैंची धाम आश्रम आ गया. जब मैं महाराजजी के दर्शन के लिए जा रहा था तो मैंने मन ही मन तय किया कि मैं महाराजजी से उस भिखारी के बारे में जरूर पूछूंगा. लेकिन जैसे ही मैं महाराजजी के सामने पहुंचा तो मैंने देखा कि उन्होंने वही कंबल ओढ़ रखा है जो उस दिन लंदन में भिखारी के हाथ में देखा था. उनके चेहरे पर बिल्कुल वही मुस्कान थी जो उस दिन बस में दिखाई दी थी. उन्होंने बिल्कुल उसी अंदाज में मेरी तरफ देखा. मेरे पास पूछने के लिए कुछ नहीं बचा था. ये वही थे जो उस दिन मुझे लंदन की बस में मिले थे. मेरे साथ जो हुआ और जो दिख रहा था उससे मैं महाराजजी की करुणा और कृपा से भर गया.

हीथर थॉम्पसन (ब्रिटेन)

#महाराजजीकथामृत

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Saturday, October 17, 2015

बाबा के सीने पर सांप और बिच्छू

गंगोत्री से ऋषिकेश लौटते वक्त रात के आठ बज गया तो बाबाजी धराली नामक एक जगह पर रुके. बाबाजी के साथ जितने भक्त थे उनमें से अधिकांश धर्मशाला में रुके. उमादत्त शुक्ला चाय की एक दुकान में ठहरे जबकि बाबा जी उसी चाय की दुकान के पीछे एक टिम्बर हाउस में रुके. सुबह जब गिरीश बाबाजी के दर्शन के लिए गये तो देखा कि बाबाजी के कंबल पर ठीक सीने के ऊपर एक सांप और बिच्छू लड़ रहे हैं. वे भयवश चिल्ला पड़े लेकिन जैसे ही बाबाजी की नींद खुली सांप और बिच्छू दोनों गायब हो गये.

#महाराजजीकथामृत

(रविप्रकाश पांडे राजीदा, द डिवाइन रियलिटी (दूसरा संस्करण),  2005, पेज- 249)

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Tuesday, October 13, 2015

सब तरफ महाराज जी

महाराजजी के एक भक्त के मन में संशय था कि एक ही वक्त में महाराज जी अलग अलग जगहों पर कैसे हो सकते हैं? महाराज जी ने उनसे तीन बार कहा, जाओ जरा उन कमरों को देखकर आओ कि वहां क्या चल रहा है. आखिरकार वह भक्त वहां से उठकर कमरों की तरफ चला गया. वह हर कमरे में जाता तो महाराज जी को पाता. छह कमरे थे और सबमें से महाराजजी बाहर निकलते दिखाई दे रहे थे.

#महाराजजीकथामृत

(रामदास, मिराकल आफ लव, पेज- 170)
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रेल में रामायण पाठ

प्रयाग स्टेशन के पास अपने आवास पर रेलवे आफिसर हेमचंद्र जोशी ने अखण्ड रामायण का पाठ रखा था. बहुत सारे स्थानीय लोग उस अखंड रामायण पाठ में शामिल थे. उत्तरकांड की समाप्ति के बाद आरती और प्रसाद वितरण का कार्यक्रम होना था तभी दादा (सुधीर दादा मुखर्जी) के भतीजे वहां आये और उन्होंने सूचित किया कि महाराजजी चर्चलेन में पधार चुके हैं.

महाराजजी श्री मां और कुछ अन्य भक्तों के साथ अभी अभी दक्षिण की यात्रा से लौटे थे. जब ट्रेन इलाहाबाद से दो सौ किलोमीटर दूर रही होगी तो महाराजजी ने कहा कि खिड़की खोल दो. जैसे ही खिड़की खुली सबको रामायण का सुन्दर और संगीतमय पाठ सुनाई दिया. कुछ सुरीली आवाजों में संगीतमय पाठ हो रहा था. भक्तों को लगा कि जरूर किसी स्थानीय गांव में रामायण का पाठ चल रहा है. कुछ देर तक उन्होंने उत्तरकांड का संगीतमय पाठ सुनाई देता रहा. आश्चर्यजनक रूप से ट्रेन कई किलोमीटर आगे चली आई लेकिन संगीतमय पाठ उसी तरह सुनाई देता रहा. लेकिन बाबा ने जैसे ही खिड़की बंद करवाई रामायण का पाठ सुनाई देना बंद हो गया. महाराजजी ने जब दोबारा खिड़की खुलवाई तो उत्तरकांड का पाठ फिर से सुनाई देने लगा.

महाराजजी की लीला का यह क्रम इलाहाबाद तक इसी तरह चलता रहा और सब रामायण पाठ को सुनने का आनंद लेते रहे. जब किसी भक्त ने उनसे पूछा कि महाराजजी यह पाठ कहां हो रहा है तो महाराजजी ने कोई जवाब नहीं दिया. जब भक्त महाराजजी के साथ चर्चलेन पहुंचे तब उन्हें पता चला कि रामायण का पाठ इलाहाबाद में एक भक्त के घर पर चल रहा था.

#महाराजजीकथामृत

(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा', द डिवाइन रियलिटी, 2005, दूसरा संस्करण, पेज- 180-181)
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