शंकर प्रसाद व्यास ने एक बार बाबा से कहा कि हनुमान जी के बारे में कथाएं तो बहुत सुनी है लेकिन कभी दिव्य रूप में उनका दर्शन नहीं हुआ. बाबा ने कहा, "आंखों से देख पाने की क्षमता है?" और इतना कहकर बाबा चुप हो गये.
उसी रात की बात है. आधी रात को व्यास जी की नींद टूट गयी. कैंची में अपने कमरे के दरवाजे को खोलकर वे बाहर निकल रहे थे कि स्वर्णिम पहाड़ जैसे आकार की एक चमकती हुई आकृति उन्हें दिखाई दी. डर के मारे उन्होंने दरवाजा बंद किया और दौड़कर बिस्तर में लेट गये.
इतने में कमरे में बाबाजी आ गये और उनके शरीर को सहलाते हुए पूछा 'तुम ठीक तो हो?' अब व्यास की जान में जान आई और वे बाबाजी के चरणों में लोट गये.
(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा' द डिवाइन रियलिटी, 2005, दूसरा संस्करण, पेज- 125-126)
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जय जय नींब करौरी बाबा!
कृपा करहु आवई सद्भावा!!
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