Friday, July 24, 2015

दिव्य पूरी का प्रसाद

एक शाम पत्नी के साथ बाबाजी के दर्शन के लिए हम चर्च लेन गये थे.

वहां सबके लिए प्रसाद की व्यवस्था थी लेकिन क्योंकि हम लोग घर से प्रसाद पाकर आये थे इसलिए हम बाहरवाले कमरे में महाराजजी के पास चले गये जहां वे एक तख्त पर बैठे हुए थे. बाबाजी चुपचाप बैठे हुए थे. मैं उनके चरण को अपने दोनों हाथ में लेकर धीरे धीरे मालिश करने लगा. इतने में बाबाजी ने अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़ा और दो नर्म गर्म मुलायम पुरियां मेरे हाथ पर रख दी.

उनके हाथों से यह दिव्य प्रसाद पाने के बाद मैं चमत्कृत होने से ज्यादा आनंदित था. मैंने दोनों पूरियों को एक पेपर में लपेट लिया और घर लाकर पूरे परिवार में प्रसाद स्वरूप वितरित कर दिया.

(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा', द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, 2005, पेज- 130-131)
-------------------------------------------------------------
जय जय नींब करौरी बाबा!
कृपा करहु आवई सद्भावा!!
------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment