Sunday, August 16, 2015

विधवा के बेटे को जीवनदान

एक बार बाबा जी कुछ भक्तों के साथ हनुमानगढ़, नैनीताल के लिए जा रहे थे. हल्द्वानी से कुछ पहले उन्होंने अपने ड्राइवर रामानन्द को और तेज चलने के लिए कहना शुरू किया. काठगोदाम और जुइलीकोट के बीच एक निर्जन सी जगह पर उन्होंने कार को रोकने के लिए कहा और उतरकर आगे बढ़े.

जंगल में एक वृद्ध विधवा अपने मृत बेटे की लाश पर विलाप कर रही थी. कुछ समय पहले उसे सांप ने काट लिया था और उसका निधन हो चुका था. उन्होंने महिला से कहा "क्यों रो रही हो?" "यह तुम्हारा इकलौता बेटा था?" "तुम्हारे पति भी जिन्दा नहीं है." यह सब सुनकर महिला और तेज विलाप करने लगी. तब बाबा ने कहा "क्यों रो रही हो. तुम्हारा बेटा मरा नहीं है. चुप हो जाओ." बाबा ने अपने हाथों से नौजवान के शरीर को रगड़कर स्पर्श किया और उसके निर्जीव शरीर में प्राण का संचार हो गया. वह जीवित हो उठा और थोड़ी ही देर में वह होश में आ गया.

बाबा तत्काल कार की तरफ लौट आये और वहां से चले गये. उन्होंने महिला को आभार जताने का भी अवसर नहीं दिया.

#महाराजजीकथामृत

(रवि प्रकाश पांडे"राजीदा" द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण 2005, पेज-174-177)

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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺
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