Monday, October 19, 2015

लंदन में महाराजजी का दर्शन

एक दिन मैं डबल डेकर बस से लंदन में यात्रा कर रहा था. मैं प्रवेश द्वार के पास ही बैठा हुआ था. बस का कंडक्टर ऊपरी डेक पर था. बस कमोबेश पूरी खाली थी. इतने में बस एक जगह रुकी और एक भिखारी बस में सवार हुआ. उसने चीथड़े पहन रखे थे और उसके हाथ में एक नीला और एक लाल कंबल था. वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और बहुत ही अच्छी मुस्कुराहट से मेरी तरफ देखने लगा. मानों वह मेरी बगल वाली सीट पर बैठना चाहता था. मैं एक तरफ खिसक गया और वह आदमी मेरी बगल में बैठ गया.

मैं अपना मुंह घुमाकर खिड़की की तरफ देखने लगा. खिड़की की तरफ देखते हुए मुझे उस बुजुर्ग आदमी के बारे में सोचते हुए मुझे उस बुजुर्ग आदमी की मोहक मुस्कान याद आ रही थी. अचानक मेरे मन में महाराजजी के बारे में विचार आने लगा. उनके बारे में सुन रखा था कि वे भी एक बुजुर्ग आदमी हैं जो कंबल रखते हैं. महाराजजी की याद आते ही मैंने उस बुजुर्ग को देखने के लिए अपना चेहरा घुमाया. अरे! वह बुजुर्ग तो गायब हो चुके थे.

रास्ते में बस भी कहीं नहीं रुकी थी इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता था कि वह बुजुर्ग कहीं उतर गये होंगे. पूरी बस में वे कहीं नजर नहीं आ रहे थे. पूरी सड़क भी खाली थी. उस बुजुर्ग भिखारी का कहीं कोई पता नहीं चला. मैं जानता था कि मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ लेकिन वह कहां चला गया?

अगले दिन मेरे कुछ मित्र मेरे पास आये और उन्होंने बताया कि बीते दिन सुबह (ठीक वही वक्त जिस वक्त बस मैं बस में था) उन्हें प्रेरणा मिली कि वे मेरे लिए टिकट की व्यवस्था करें और अपने साथ महाराजजी का दर्शन करने के लिए लेकर आयें. यह सब बहुत अटपटा था. हालांकि मेरे दोस्तों ने जो रकम आफर की थी वह अच्छी खासी थी लेकिन इतने से मेरे जैसे विद्यार्थी के लिए भारत जाने का पर्याप्त इंतजाम नहीं हो रहा था.

लेकिन अभी महाराजजी का एक चमत्कार होना और बाकी थी. इंग्लैंड में मेरे स्कूल से हर साल सेमेस्टर पूरा होने पर घर जाने का पूरा खर्चा मिलता था. मैंने इसके लिए आवेदन किया. लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मुझे उसकी दोगुनी रकम का चेक मिला जितना मैंने आवेदन किया था. मैंने इस बारे में स्कूल प्रशासन को बताया तो उन्होंने स्कूल का एकाउण्ट देखकर सूचित किया कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है. अंतत: मुझे अहसास हो गया कि महाराजजी मुझे दर्शन के लिए बुला रहे हैं.

एक महीने के भीतर मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर था जहां से मैं सीधे कैंची धाम आश्रम आ गया. जब मैं महाराजजी के दर्शन के लिए जा रहा था तो मैंने मन ही मन तय किया कि मैं महाराजजी से उस भिखारी के बारे में जरूर पूछूंगा. लेकिन जैसे ही मैं महाराजजी के सामने पहुंचा तो मैंने देखा कि उन्होंने वही कंबल ओढ़ रखा है जो उस दिन लंदन में भिखारी के हाथ में देखा था. उनके चेहरे पर बिल्कुल वही मुस्कान थी जो उस दिन बस में दिखाई दी थी. उन्होंने बिल्कुल उसी अंदाज में मेरी तरफ देखा. मेरे पास पूछने के लिए कुछ नहीं बचा था. ये वही थे जो उस दिन मुझे लंदन की बस में मिले थे. मेरे साथ जो हुआ और जो दिख रहा था उससे मैं महाराजजी की करुणा और कृपा से भर गया.

हीथर थॉम्पसन (ब्रिटेन)

#महाराजजीकथामृत

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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺
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