tag:blogger.com,1999:blog-62492300925514543302024-03-12T16:52:09.358-07:00Neeb Karori Baba (Neem karoli baba)Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-57855273246787070282021-06-04T06:56:00.001-07:002021-06-04T07:01:03.174-07:00महाराज जी के रामदास<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ_TFpUjD80pjfnEXHka9rOuk6nRyjvNmxZ9kCbiR1PXj7fCUwUf88vrkYiAGaSRVDbwL_TqUv7uvJsmlFvIqcieJ1ulnNhBQ9k8MZ5NtGFhmr9-AfxJ4vVimdxNxTZHX0oU2k3Kxx1UA/s1600/1622815241523007-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ_TFpUjD80pjfnEXHka9rOuk6nRyjvNmxZ9kCbiR1PXj7fCUwUf88vrkYiAGaSRVDbwL_TqUv7uvJsmlFvIqcieJ1ulnNhBQ9k8MZ5NtGFhmr9-AfxJ4vVimdxNxTZHX0oU2k3Kxx1UA/s1600/1622815241523007-0.png" width="400">
</a>
</div>रामदास तब अमेरिका में एलएसडी पर शोधकर्ता प्रोफेसर रिचर्ड अलपर्ट थे. जीवन के परे के जीवन की खोज में एलएसडी के जरिए वे इंसान को एक ऐसी दुनिया में पहुंचा देना चाहते थे जहां कोई दुख नहीं था. रिचर्ड अलपर्ट की खोज नशेखोरी का नया तरीका न थी. इसलिए सबसे पहला प्रयोग उन्होंने अपने और शोधकर्ता साथियों पर ही किया. पांच दोस्तों ने अपने आपको एक घर में बंद कर लिया और तय कि अगले तीन हफ्तों तक वे हर चार घण्टे पर 400 माइक्रोग्राम एलएसडी लेगें और उसका असर देखेंगे. तीन हफ्ते में उन पांचों ने स्वर्ग नरक सब अनुभव कर लिया लेकिन बाहर आते ही कुछ घण्टों के अंदर सारा अनुभव धराशायी हो गया. ईश्वर जैसा अनुभव करने की उनकी कोशिश बाहर आने के कुछ ही घण्टों के भीतर सामान्य इंसान की होकर रह गयी. <br></div><div><br></div><div>रिचर्ड अलपर्ट के इस प्रयोग के तीन साथी जल्द ही भारत की तरफ आगे बढ़ गये क्योंकि उन्होंने बौद्ध धर्म की 'बुक आफ डेथ' से यह समझ आ गया कि एलएसडी से उन्हें जो कुछ अनुभव हुआ उससे मिलता जुलता कुछ अनुभव इस किताब में भी आता है. वे समझ गये कि एलएसडी के जरिए वे जिस अनुभव से गुजरना चाहते हैं वैसे अनुभव से पूरब के प्राचीन ऋषि मुनि गुजरते रहे हैं. इसलिए वे लोग भारत की तरफ चल दिये जबकि रिचर्ड अमेरिका में ही रह गये और लोगों को अपने पराभौतिक अनुभव सुनाते रहे. </div><div><br></div><div>इसी बीच रिचर्ड की मुलाकात डेविड से हुई. डेविड बहुत बुद्धिमान था और कभी रिचर्ड का छात्र रह चुका था. पैंतीस साल की उम्र में अपना शोध झेरॉक्स कंपनी को बेचकर वह रिटायर हो चुका था और बौद्ध भिक्षु बनना चाहता था. इसी कड़ी में वह भारत आने की तैयारी कर रहा था. रिचर्ड के लिए भी यह एक मौका था कि वे भी भारत क्यों नहीं चले जाते?</div><div><br></div><div>अल्पर्ट यह सोचकर भारत जाने के लिए तैयार हो गये कि हो न हो कोई ऐसा योगी मिले जिसे वे एलएसडी देकर उसके असर की जांच करते हुए यह पता लगा सकें कि कहां क्या मिस हो रहा है. अल्पर्ट भारत आ गये और काफी वक्त घूमते रहे लेकिन उन्हें कुछ खास हासिल न हो सका. वे निराश होकर अमेरिका लौटना चाहते थे. तभी एक दिन धर्मशाला के एक ब्लू तिबत्तियन कैफे में उनकी मुलाकात 23 साल के एक नौजवान से हुई. देखने में पश्चिमी दिख रहे उस नौजवान की भेषभूषा साधुओं वाली थी. हालांकि अल्पर्ट ने शुरू में कोई खास रुचि नहीं दिखाई लेकिन नौजवान के आकर्षण से वे अपने आपको अलग न कर सके. परिचय हुआ तो नौजवान का नया नाम पता चला, भगवानदास.</div><div><br></div><div>मेल मुलाकात के बाद अल्पर्ट और उनके पांच लोगों का ग्रुप भगवान दास के साथ पांच दिन होटल में साथ रहा. पांचवे दिन जब ग्रुप के बाकी सदस्य "जेन" की खोज में जापान की तरफ निकलने लगे को भगवानदास ने अल्पर्ट से कहा, उठो और मेरे साथ चलो. और वहां से वो लोग बानेश्वर की तरफ चल पड़े. </div><div><br></div><div>तीन दिन की पदयात्रा में नौजवान भगवानदास प्रोफेसर अल्पर्ट का मालिक था. कितनी भी तकलीफ हो लेकिन दोनों के बीच होता वही था जो भगवानदास चाहते थे. चलते चलते थकान लगे तो भगवान दास की वाणी, "अतीत को भूल जाओ. इस वक्त में जहां हो वहां रहो." "लेकिन मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूं." जवाब मिला "ये सब भावनाएं हैं. भावनाएं तरंग होती हैं, उन्हें तैरने दो और वे गायब हो जाएंगी." </div><div><br></div><div>आखिरकार जब अल्पर्ट थककर चूर हो गये तो सहसा भगवान दास ने कहा, ठीक है थोड़ा आराम कर लो. अल्पर्ट ने महसूस किया कि भगवानदास के साथ उनकी हालत उस औरत जैसी हो गयी है जो अपनी बात मनवाने के लिए पति के आगे सब प्रकार से कोशिश करे लेकिन उसकी एक न चलने पाये. लेकिन इसके बाद भी अलपर्ट ने किसी व्यक्ति से इतना गहरा लगाव महसूस नहीं किया था जितना वे इस नौजवान से कर रहे थे. अल्पर्ट कहते हैं कि उस यात्रा के दौरान वह भारी भरकम नौजवान जहां कहीं जाता उनके बीच सम्मान पाता. फिर वे चाहे बौद्ध हों कि शैव संत. बीते पांच सालों में उस नौजवान ने भारत की विविधता से गहरा नाता जोड़ लिया था.</div><div><br></div><div>अल्पर्ट ने महसूस किया कि उस भारी भरकम आदमी को अपनी मान्यताओं पूरा भरोसा है और वह उस पर अडिग है. उसे किसी भी तरीके से डिगाया नहीं जा सकता. भगवान दास के साथ रहते हुए अल्पर्ट ने महूसस किया कि वे रात में सोते नहीं है. रात में जब भी अल्पर्ट की नींद खुली उन्होंने भगवानदास को हमेशा आसन में बैठा पाया. अल्पर्ट ने सोचा हो सकता है वह बैठे बैठे सोता हो. यह भी हो सकता है कि वह सोता ही न हो. </div><div><br></div><div>एक रात अल्पर्ट पेशाब करने के लिए उठे. बाहर निकले तो उनकी नजर आसमान की तरफ गयी. तारों के बीच देखते हुए उन्होंने महसूस किया कि इन्हीं तारों में एक तारा मेरी मां भी होगी जिनका पिछले साल निधन हो गया था. अल्पर्ट ने महसूस किया कि जरूर उनकी मां आसमान से उन्हें देख रहीं होंगी. वे देख रही होंगी कि इस समय मैं एक ऐसे नौजवान के साथ हूं जो धोती पहनता है और बहुत कठोर है. </div><div><br></div><div>भगवानदास के साथ कुछ महीने रहते हुए अल्पर्ट ने महसूस किया कि उनका वीजा खत्म हो रहा है. उन्हें कुछ नये कपड़ों की भी जरूरत है. अगले दिन सुबह भगवान दास ने अल्पर्ट से कहा कि मुझे वीजा की दिक्कत है, मुझे जल्द से जल्द अपने गुरू के पास जाना है. भगवानदास ने कहा कि "शहर चलकर डेविड की लैण्ड रोवर ले लेंगे फिर हिमालय में गुरू के पास चलेंगे." यह सुनकर अल्पर्ट को थोड़ा विश्वास नहीं हुआ. अल्पर्ट को किसी गुरू में कोई आस्था न थी उसे मालूम था सारे गुरू लालची होते हैं और कैलिफोर्निया ऐसे लालची गुरुओं से भरा पड़ा है. और लैण्ड रोवर कोई क्यों दे देगा? </div><div><br></div><div>फिर भी अल्पर्ट भगवानदास के साथ चल पड़े. उनके आश्चर्य का तब कोई ठिकाना न रहा जब डेविड के भारतीय दोस्त ने खुद कहा कि अगर अपने गुरू से मिलने जा रहे हैं तो लैंड रोवर क्यों नहीं ले जाते. अगले दिन भगवानदास लैंड रोवर चला रहे थे और हिमालय की तरफ आगे बढ़ चले थे जहां हिमालय के अस्सी मील अंदर उन्हें अपने गुरू से मिलना था. रास्तेभर अल्पर्ट सोचते रहे कि जादुई अनुभूतियों के चक्कर में आखिर उन्होंने हारवर्ड की अपनी तार्किक दुनिया को क्यों त्याग दिया?</div><div><br></div><div>आखिरकार वे वहां थे जहां सड़क किनारे बने मंदिर में उनका वहां के लोगों द्वारा स्वागत हआ. स्वागत करने वालेे लोग इतना खुश थे कि कुछ मारे खुशी के रो पड़े थे. अजब माहौल बन गया था. मेल मुलाकात के दौरान दास ने गुरू के बारे में पूछा तो लोगों ने बताया वे यहीं हैं. और पहाड़ी की तरफ इशारा कर दिया. अब रोने की बारी भगवानदास की थी. इसके बाद सब पहाड़ी की तरफ दौड़े. बड़ी तेजी से पूरा कारवां पहाड़ी की तरफ चल दिया. अल्पर्ट ने महसूस किया कि इस भागदौड़ में लोगों ने उनकी तरफ कोई ध्यान न दिया. आखिरकार सड़क से दूर सब पहाड़ी की तराईनुमा जगह पर पहुंचे जहां साठ सत्तर साल के एक बुजुर्ग कंबल ओढ़े बैठे हुए थे और आसपास उनके भक्तों का घेरा बना हुआ था. </div><div><br></div><div>अल्पर्ट के आश्चर्य का तब कोई ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि कैलिफोर्निया का वह नौजवान भरभराकर अपने गुरू के चरणों में गिर पड़ा. भगवानदास जमीन पर पड़े थे और अपने गुरू के पैरों को हाथ में लिए रोये जा रहे थे. अल्पर्ट के लिए यह सब बहुत 'बकवास' जैसा दिख रहा था. हालांकि उन्हें महसूस हुआ कि मानों उनसे इस तरह की उम्मीद शायद कोई नहीं कर रहा था.</div><div><br></div><div>इसके बाद उन बुजुर्ग ने भगवानदास से हिन्दी में कुछ कहा. जिसका अनुवादक ने अनुवाद किया कि क्या भगवान दास के पास उनका कोई फोटोग्राफ है. जब भगवान दास ने कहां हां तो बुजुर्ग ने इशारा किया, (अल्पर्ट को) "दे दो." अल्पर्ट शिष्टाचार वश बड़ी मुश्किल से मुस्कुराये हालांकि पैर तो अब भी उन्होंने नही छुआ. </div><div><br></div><div>इसके बाद बुजुर्ग (जिन्हें लोग महाराजजी कह रहे थे) ने अल्पर्ट की तरफ आंखों से इशारा करते हुए पूछा " तुम बड़ी कार से आये हो." अल्पर्ट ने स्वीकार किया कि हां वह बड़ी कार में आये हैं जो पहाड़ी के नीचे खड़ी है. इसके बाद बुजुर्ग ने कहा, "तुम अमीर आदमी हो. क्या वैसी ही एक कार मेरे लिए ला सकते हो? " अल्पर्ट ने मन ही मन सोचा गुरू सब ऐसे ही होते हैं. और फिर कहा, "हां. शायद." इसके बाद बुजुर्ग ने इशारा किया कि "इन्हें ले जाओ और प्रसाद दो."</div><div><br></div><div>वहां से थोड़ी दूर पर बने भवन में उन्हें बहुत प्यार से भोजन कराया गया जिसके बारे में अल्पर्ट ने महसूस किया कि प्रसाद देनेवाले मानवता और इंसानियत से लबालब नजर आ रहे थे. अभी वे प्रसाद पा ही रहे थे कि अगला संदेश फिर से उनके पास आया. महाराज जी याद कर रहे हैं. थोड़ी देर में वे फिर से महाराज जी के सामने थे. और अब बुजुर्ग व्यक्ति के पहले ही वाक्य ने उनके शरीर में सिहरन पैदा कर दी. </div><div><br></div><div>" रात को आसमान में तारे देख रहे थे?"</div><div><br></div><div>"हां"</div><div><br></div><div>"मां के बारे में सोच रहे थे!"</div><div><br></div><div>"हां" कहते हुए अल्पर्ट सोचने लगे कि उस रात के बारे में तो उन्होंने किसी व्यक्ति को कुछ बताया नहीं था. कम से कम किसी जीवित व्यक्ति को तो कुछ नहीं बताया था. फिर....</div><div><br></div><div>"तुम्हारी मां पेट के रोग के कारण मरी थीं......." थोड़ी देर चुप रहकर "स्प्लीन के कारण...."</div><div><br></div><div>अब तो जैसे हारवर्ड के तार्किक दुनिया का जो समझ और स्वभाव बचा रह गया था वह भी भरभराकर गिर गया. अल्पर्ट को अपने पुराने दिनों के एक सज्जन याद आये जो टेलीपैथी की बात करते थे लेकिन ये बुजुर्ग सज्जन तो कुछ और ही थे. महाराज जी के बारे में उन्होंने अपने आपको बहुत समझाने की कोशिश की जो कि उन्हें पश्चिमी समझ के सांचे में बिठाकर एक सामान्य आदमी के रूप में देख सके. लेकिन सब असफल हुआ. मानों अल्पर्ट के कम्प्यूटर ने काम करना बंद कर दिया और लाल बत्ती जला दी है. </div><div><br></div><div>अल्पर्ट के लिए पश्चिम के काटीजियन तर्क के सारे सिद्धांत बेकार साबित हुए. अब बुजुर्ग व्यक्ति उनकी तरफ देखकर मुस्करा रहे थे और अल्पर्ट के भीतर पश्चिम ने जितना कुछ तर्कवाद गढ़ा था वह सब धराशायी होता जा रहा था जो यह कहता था कि यह संभव नहीं है. इसके बाद वह बुजुर्ग अल्पर्ट की तरफ झुके तो अल्पर्ट ने अपने सीने में भारी दबाव महसूस किया. उन्हें महसूस हुआ कि भारी आवेग के दबाव से जैसे भीतर कुछ खुलता जा रहा है. उन्होंने महसूस किया कि वे बच्चे की तरह रो रहे है लेकिन साथ ही साथ उन्होंने असीम आनंद भी अनुभव किया. उन्हें लगा यात्रा का अंत हो गया. वे घर आ गये हैं. </div><div><br></div><div>वहां मौजूद लोग अल्पर्ट को वहां से उठाकर ले गये. वे सब बहुत खुश थे क्योंकि "वह" अब अल्पर्ट के साथ भी हो गया है जो उनके साथ भी हो चुका है. अल्पर्ट को वहां से उठाकर तीन किलोमीटर दूर किसी के घर ले जाया गया. अल्पर्ट असहज थे लेकिन इस वक्त उन्हें हवा से भी हल्का महसूस हो रहा था. बाद में जब वे बिस्तर पर लेटने लगे तो उन्हें लगा कि अब वे जान सकेंगे कि एलएसडी क्या है. लंबे समय बाद कोई ऐसा मिला है जो जरूर जानता होगा. उन्हें एलएसडी के असर के बारे में जरूर पता होगा. वे जरूर इस बारे में उनसे पूछेंगे. </div><div><br></div><div>अगले दिन सुबह आठ बजे फिर से बुलावा आया, महाराज जी उन्हें याद कर रहे हैं. तत्काल अल्पर्ट उस जगह जाने के लिए तैयार होने लगे जहां कल सब कुछ घटित हुआ था. लेकिन जैसे ही वे महाराज जी के पास पहुंचे उन्हें दूसरा झटका लगा. "तो सवाल के बारे में क्या कहना है? दवा लाये हो?" अल्पर्ट सन्न रह गये. उन्होंने अपने सवाल के बारे में किसी से कुछ नहीं कहा था. उन्होंने सिर्फ सोचा था. और यहां बुजुर्ग आदमी उनसे उसी बारे में पूछ रहे हैं. वे तत्काल कार की तरफ दौड़कर गये और एलएसडी की बोतल लेकर आये. </div><div><br></div><div>बुजुर्ग आदमी के सामने बोतल दिखाते हुए उन्होंने कहा, "यह एसटीपी है, यह लिब्रियम है और यह एलएसडी है." </div><div><br></div><div>"और यह सब तुम्हें सिद्धि देती है?"</div><div><br></div><div>अल्पर्ट ने सिद्धि के बारे में नहीं सुना था. और उस शब्द का अर्थ समझने के लिए अनुवादक का इंतजार कर रहे थे कि बुजुर्ग आदमी ने दवा के लिए हाथ आगे कर दिया. अल्पर्ट ने झिझकते हुए बोतल से एक टेबलेट निकालकर उनके हाथ पर रख दिया. यह करते हुए अल्पर्ट हिचक रहे थे क्योंकि एक गोली 300 माइक्रोग्राम पॉवर की थी जो कि हाई डोज था. एक आदमी के लिए 75 माइक्रोग्राम का डोज पर्याप्त था. लेकिन इन बुजुर्ग का काम एक गोली से नहीं चलनेवाला था. बहुत हिचकते हुए अल्पर्ट ने एक और फिर एक और गोली निकालकर हाथ पर रख दी. और बुजुर्ग सज्जन ने तीनों गोली एकसाथ निगल ली. और नित्यप्रति की सामान्य दिनचर्या शुरू कर दी. </div><div><br></div><div>अब अलपर्ट किसी विस्फोट का इंतजार कर रहे थे. 900 माइक्रोग्राम हाई एसिड किसी एडिक्ट का डोज हो सकता है. सत्तर साल के एक बुजुर्ग के लिए यह बहुत ज्यादा था जिसने कभी एलएसडी न लिया हो. लेकिन पूरा दिन बीत गया. कुछ न हुआ. वे आश्रम की अपनी नियमित दिनचर्या करते रहे और बीच बीच में कभी कभी अल्पर्ट की तरफ भी देखते रहे जैसे कोई मौन संदेश दे रहे हों. लेकिन दिन बीत गया. कुछ नहीं हुआ.</div><div><br></div><div>उस शाम अल्पर्ट को मंदिर ले जाया गया जहां चारों तरफ महाराज जी के भक्त थे. कोई भेदभाव नहीं. कोई मांग नहीं. किसी के लिए कोई नियम कानून नहीं लेकिन फिर भी एक अनुशासन. सबकुछ भीतर से व्यवस्थित. अब अल्पर्ट को कुछ कुछ समझ आ रहा था. वे जिस बुजुर्ग सज्जन से मिले थे उनके बारे में समझ आया कि वे सहज समाधि की अवस्था में हैं. एक ऐसी अवस्था जहां उन्हें भौतिक जगत से कुछ नहीं चाहिए था. लोगों की तकलीफ दूर करने के लिए अपनी यात्राओं में अक्सर वे किसी जगह रुकते और कहते यहां एक मंदिर बनाओ. और वहां मंदिर का निर्माण शुरू हो जाता.</div><div><br></div><div>अल्पर्ट अब सामान्य हो रहे थे लेकिन आश्रम के लोग अभी भी उनका ध्यान रख रहे थे. उनके साथ कुछ बड़ा घटित हुआ था और उनका ध्यान रखे जाने की जरूरत थी. हालांकि अभी भी महाराज जी द्वारा अल्पर्ट के मन संदेशों का पाठ जारी था. जैसे एक रात अपनी डायरी पलटते हुए उन्होंने विचार किया कि वे हिमालय में हैं और उन्हें बौद्ध संत लामा गोविन्द से मुलाकात करनी चाहिए. अगले दिन महाराज जी आंखों से इशारा करते हुए पूछ लिया "तुम हिमालय में हो. लामा गोविन्द से संपर्क क्यों नहीं करते?" अल्पर्ट ने महसूस किया कि उनका उसी तरह ध्यान रखा जा रहा है जैसे किसी छोटे बच्चे का रखा जाता है कि कहीं वह सड़क पर दौड़कर न चला जाए. </div><div><br></div><div>करीब चार महीने आश्रम में बिताने के बाद अल्पर्ट को महसूस हुआ कि उन्हें वीजा के सिलसिले में दिल्ली जाना होगा. करीब बारह घण्टे की बस यात्रा के बाद वे दिल्ली पहुंचे और दिल्ली के कनाट प्लेस में पॉश दुकानों पर कुछ खरीदारी करने पहुंचे. तभी उन्हें कुछ महसूस हुआ. एकाएक एक आंतरिक आवेग आया. यह आंतरिक आवेग ड्रग्स जैसा नहीं था. कुछ अलग था. एक अलग तरह की आंतरिक अनुभूति. जैसे वे किसी और धरातल पर पहुंच गये हैं. हालांकि उन्होंने अपना काम जारी रखा. क्योंकि वे साधुवेश में थे इसलिए दुकानदार ने उनसे खरीदारी के पैसे नहीं लिए और कहा कि एक तो आप पश्चिम से आये हैं और साधु वेश में हैं. इसे गिफ्ट समझकर रख लीजिए. </div><div><br></div><div>रामदास बीते चार महीने से शुद्ध शाकाहार पर थे लेकिन उन्हें कोई परेशानी न थी. वे हल्का महसूस कर रहे थे. इसलिए दिल्ली में एक ऐसे रेस्टोरेन्ट में गये जो कि शुद्ध शाकाहारी था. लेकिन वहां इंगलिश बिस्कुट और आइसक्रीम देखकर खुद को रोक नहीं पाये और छककर खाया. और जब वे लौटकर आश्रम आये तो महाराज जी ने उनसे इतना जरूर पूछा "कैसे रहे बिस्कुट?" </div><div><br></div><div>आश्रम में लौट आने के बाद अल्पर्ट ने महसूस किया कि कई बार महाराज जी लोगों के लाये प्रसाद में से कुछ खा लेते थे. यह उनकी तपस्या थी और ऐसा करके वे किसी के कर्म को काटते थे. </div><div><br></div><div>आश्रम में रहते हुए अल्पर्ट रात में अक्सर मानसिक फंतासियों में खो जाते थे कि कैसे सिद्धि हासिल कर लेने के बाद वे अमेरिका में चैरिटी प्रोग्राम चलायेंगे. लेकिन यह सब बदलता रहता और फिर कई बार यौन इच्छाओं में भी खो जाते थे. और इसी उधेड़बुन के बीच एक दिन महाराज जी ने सवाल किया, "अमेरिका में चैरिटी करना चाहते हो?" अलपर्ट के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. "हे भगवान! वे वह सब जानते हैं जो आपके दिमाग में चलता रहता है!" अल्पर्ट ने महाराज जी के चेहरे की तरफ देखा तो उन्हें गहरे प्यार के शांत सागर सी अनुभूति हुई. महाराज जी ने कहा "एक बार आपको महसूस हो जाए कि भगवान सब जानते हैं, आप मुक्त हो जाते हैं."</div><div><br></div><div>आश्रम में हरिदास बाबा अल्पर्ट को बतौर शिक्षक नियुक्त किये गये. हरिदास बाबा ने नित्यप्रति की दिनचर्या और आश्रम जीवन के साथ साथ अल्पर्ट को राजयोग की शिक्षा दी. ब्लैकबोर्ड पर इबारतें लिखकर राजयोग की गूढ़ शिक्षाओं से अल्पर्ट का परिचय करवाया गया. "अगर कोई पॉकेटमार किसी संत से मिलता है तो भी उसकी नजर बटुए पर ही होती है." इसी तरह अहिंसा का महत्व समझाते हुए अल्पर्ट को बताया गया कि पशुओं के प्रति अहिंसा का भाव क्यों जरूरी है. जीवदया रखनेवाले योगी को कोबरा भी भयभीत नहीं करता है. प्रेम और अहिंसा का महत्व समझाया गया. </div><div><br></div><div>लेकिन अब धीरे धीरे रिचर्ड अलपर्ट के विदाई का समय भी नजदीक आने लगा था. इसी बीच एक दिन महाराज जी भक्तों के साथ जंगल की तरफ चले. भगवानदास और अल्पर्ट भी साथ थे. महाराज जी वहां काम करनेवाले सेवादारों के साथ एक झोपड़ी में चले गये जहां बुलावे के बाद अल्पर्ट को भी भेजा गया. और अल्पर्ट जब गुरू के सामने बैठे तो कुछ बहुत सामान्य से सवाल किये गये. "क्या आप अमेरिकावासियों को खुश रखोगे? क्या आप बच्चों को भोजन कराओगे?" अल्पर्ट ने कहा "हां" तो महाराज जी ने कहा, "बहुत अच्छा". और झुककर अल्पर्ट के माथे पर तीन बार स्पर्श कर दिया. </div><div><br></div><div>अल्पर्ट को इस बार वैसी कोई शारीरिक अनुभूति न हुई जैसी पहली बार हुई थी. लेकिन अल्पर्ट को अपने हृदय में गहरे प्यार का सागर उमड़ता प्रतीत हुआ. हालांकि वहां मौजूद लोगों ने बाद में अल्पर्ट को बताया कि जब वे महाराज जी से मिलकर बाहर आये थे तो उनके चेहरे पर दिव्य आभा थी. </div><div><br></div><div>एक लंबी यात्रा के बाद अब उन्हें अमेरिका भेज दिया गया था. इस निर्देश के साथ कि "अभी और यहीं सत्य है." उन्हें यह भी निर्देश दिया गया कि वे अमेरिका में महाराज जी के परिचय और स्थान को गुप्त रखेंगे. हालांकि यह हो नहीं पाया और रामदास के प्रवचनों से कुछ लोगों ने कैंचीधाम और महाराज जी का पता पा ही लिया.</div><div><br></div><div>(अमेरिका में रामदास के प्रवचनों और "डूइंग योर बीइंग" के प्रस्तावना के आधार पर 1973 में ब्रिटेन में प्रकाशित लेख का महाराज जी की प्रेरणा से यथायोग्य अनुवाद)</div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-45632316441532165892016-06-07T00:57:00.001-07:002016-06-07T00:57:20.442-07:00हम तो आये थे, पंजाबिन ने डांटकर भगा दिया<p dir="ltr">नैनीताल की श्रीमति विधा शाह ने एक दिन मन में सोचा कि महाराज आप सब के घर आते है, मेरे घर भी आओ किसी दिन पर संकोचवश कह नहीं पायी। आपका घर बाज़ार में था, संकरी सीढ़ियाँ थी आपकी। बाबा का डील- डोल देख कर आपको लगा कि बाबा के लिये उपर सीढ़ियाँ चडना मुश्किल है। अचानक आप के मन की बात जानते हुए बाबा स्वत: बोल उठे," हम तेरे घर आयेंगे, तू हवन करवा।" </p>
<p dir="ltr">आपने मंदिर के पुजारी से हवन का अनुष्ठान करवाया। जिस दिन पूर्णाहूति हुई आप प्रसाद लेकर घर आ रही थी तो देखा कि रास्ते भर एक दुबला पतला साधू आपके पीछे पीछे चला आ रहा है। इससे आपको कुछ मानसिक परेशानी हुई। वे बराबर आपके पीछे चल रहा था। घर आने का रास्ता जो कि एक पंजाबी परिवार के घर से होकर जाता था, वहाँ आप सीढियों से ऊपर चढ़ गयी। उस साधू को उनके पीछे देखकर, पंजाबी परिवार ने उसे ढांट कर भगा दिया। हालांकि उनकी समझ में नहीं आया कि वो साधू पीछा क्यूँ कर रहा है। </p>
<p dir="ltr">इस घटना के कुछ समय बाद आप बाबा के पास बैठी थीं कि आपके मन में ख़्याल आया कि बाबा ने घर आने की बात कहीं थी उनके कहे अनुसार यज्ञ भी करवाया पर बाबा नहीं आये। इस पर बाबा तुरंत बोल उठे" हम तो आये थे, पर तेरे यहाँ पंजाबिन ने हमें भगा दिया।" आप बाबा को पहचान न पाई, अपने पर आपको बहुत ग्लानि हुई। बाबा तो किसी भी रूप में आपको मिल सकते है, बस आप पहचान लीजियेगा। </p>
Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-23942280181987008342015-12-22T08:58:00.001-08:002015-12-22T08:58:56.668-08:00बाबाजी ने बचाई जिन्दगी<p dir="ltr">अल्मोड़ा में एक दिन दिवाकर पंत बहुत बुरी तरह बीमार हो गये। आधी रात होते होते उनकी हालत बहुत नाजुक हो गयी। पहाड़ में इतनी रात किसी डॉक्टर को बुलाना भी संभव नहीं था। सब सुबह होने का इंतजार कर रहे थे। उनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उनकी पत्नी रोते रोते बदहवास होकर गिर पड़ीं। </p>
<p dir="ltr">तभी उन्होंने महसूस किया जैसे महाराज जी उनका कंधा पकड़कर हिला रहे हैं और एक दवा की तरफ इशारा करते हुए कह रहे हैं कि "यह दवा दे दो। वह ठीक हो जाएगा। "</p>
<p dir="ltr">उन्हें यह सोचने का भी होश नहीं था कि अचानक बाबाजी कब आ गये? कमरे में उनके अलावा किसी और ने बाबाजी को देखा भी नहीं। वे उठीं और बाबाजी ने जिस दवा की तरफ इशारा किया था वह दवा पिला दी। दवा देते ही दिवाकर पंत के व्यवहार में अजीब सा बदलाव आ गया। वे हिंसक हो गये और अनाप शनाप बकने लगे। ऐसे लग रहा था जैसे उनके दिमाग का संतुलन बिगड़ गया है। सब उनकी पत्नी के व्यवहार को कोस रहे थे कि बिना जाने समझे उसने कौन सी दवा दे दी। खुद उनकी पत्नी को भी पता नहीं था कि उन्होंने कौन सी दवा दे दी है। उन्हें न दवा का नाम पता था और न डोज। </p>
<p dir="ltr">खैर, अगली सुबह डॉ खजानचंद आये। रोगी की जांच करने के बाद उन्होंने वह सब वाकया बड़े धैर्य से सुना जो रात में घटित हुआ था। उन्होंने कोरोमाइन नामक दवा की वह शीशी भी देखी जिसमें से रात में रोगी को उनकी पत्नी ने दवा पिलाई थी। सब सुनने के बाद उन्होंने दिवाकर पंत की पत्नी से पूछा, बेटी तुमने यह दवा क्यों दी? </p>
<p dir="ltr">मारे शर्म और अपराधबोध के वो कोई जवाब न दे सकीं। बस बुरी तरह रोये जा रही थीं। तब डॉक्टर ने उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा कि "यह दवा देकर तुमने अपने पति की जान बचा ली। उस वक्त सिर्फ यही एक दवा थी जो रोगी को दी जा सकती थी।" डॉक्टर ने कहा, अब वे ठीक हो जाएंगे। घबराने की कोई बात नहीं है। </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडे (राजीदा), द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, (१९९५), पेज- १०७/१०८) </p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा। 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा।। 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBfwQPx8iq0ixL8quEmCA2MYaXhtuHjXWVFxwXIkcEx0qcVJrIpZmRqPmOmPmGDacms7YwwEL7x-JZeWeptaAR1FFu1yZPwZ0j185oxlsQcAQET1GjYoGO88Nv_hCO4UJHWrkUgydHuiM/s1600/FB_IMG_1449584547624.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBfwQPx8iq0ixL8quEmCA2MYaXhtuHjXWVFxwXIkcEx0qcVJrIpZmRqPmOmPmGDacms7YwwEL7x-JZeWeptaAR1FFu1yZPwZ0j185oxlsQcAQET1GjYoGO88Nv_hCO4UJHWrkUgydHuiM/s640/FB_IMG_1449584547624.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-67239516388622027642015-12-15T10:59:00.001-08:002015-12-15T10:59:53.996-08:00कंजूस का धन<p dir="ltr">बात 1966 की है। तब कैंची नदी पर इतना बड़ा पुल नहीं था। एक लकड़ी का छोटा सा पुल था। कई बार दोपहर में वे वहीं जाकर बैठ जाते थे और भोजन करते थे। पंद्रह जून के भंडारे से पहले एक दिन वे उसी पुल पर बैठे हुए थे कि बरेली से एक भक्त आये। ट्रक में। कुछ पत्तल और कसोरे (मिट्टी का बर्तन) साथ लाये थे भंडारे के लिए। उन्होंने वह सब वहां अर्पित करते हुए मुझसे कहा, "दादा बताइये और क्या जरूरत है?"</p>
<p dir="ltr">मेरे नहीं कहने के बाद भी वे बार बार यही जोर देते रहे कि बताइये और क्या चाहिए। बताइये और क्या चाहिए। उनके बहुत जोर देने पर मैंने कह दिया कि दो खांची (बांस का बना बड़ा बर्तन) कसोरे और भेज दीजिएगा। </p>
<p dir="ltr">तब तक बाबाजी चिल्लाये। क्या? क्या करने जा रहे हो तुम उसके साथ मिलकर? है तो सबकुछ। तुम बहुत लालची हो गये हो। कोई कुछ देना चाहे तो तुम तत्काल झोली फैला देते हो।" मैं चुप रहा। </p>
<p dir="ltr">प्रसाद लेने के बाद जब वह व्यक्ति जाने के लिए तैयार हुआ और महाराजजी के पास उनके चरण छूने पहुंचा तो सौ रूपये का नोट निकालकर रख दिया। महाराजजी ने तत्काल वह सौ रूपये का नोट उसके सामने ही फाड़कर फेंक दिया। वह व्यक्ति बहुत खिन्न मन से वापस लौट गया। </p>
<p dir="ltr">उसके जाने के बाद महाराजजी ने कहा, "आप समझते नहीं हैं दादा। कंजूस का दिया धन या भोजन आपको स्वीकार नहीं करना चाहिए। हजम नहीं होगा। उस आदमी के पास बहुत पैसा है लेकिन दान पुण्य के लिए धेला भी खर्च नहीं करता है। मैं उसको बहुत अच्छे से जानता हूं।" </p>
<p dir="ltr">(सुधीर "दादा" मुखर्जी द्वारा अपने दोस्त को बताया गया एक वाकया।)</p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा। 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा।। 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqhcZvZfu9t857v-r3IIr67Ee6IqllYgvZlhMHASkTwlKyK3pkVG1a1QAD3QXIxREdrDWQMQgJZqjm5Tg9TWBeAY7RlzDsZfK25OtO21zL1yq-lnCkLqtvJi83KS8iUZT7QmE6N5zbhug/s1600/FB_IMG_1450183598647.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqhcZvZfu9t857v-r3IIr67Ee6IqllYgvZlhMHASkTwlKyK3pkVG1a1QAD3QXIxREdrDWQMQgJZqjm5Tg9TWBeAY7RlzDsZfK25OtO21zL1yq-lnCkLqtvJi83KS8iUZT7QmE6N5zbhug/s640/FB_IMG_1450183598647.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-35180481932179580482015-11-17T06:33:00.001-08:002015-11-17T06:33:52.771-08:00आंखों की रोशनी वापस आ गयी<p dir="ltr">एक बार इलाके के एक बुजुर्ग की दोनों आंखें चली गयी। उस वक्त वे बुजुर्ग महाराजजी के पास ही रह रहे थे। लोगों ने जब महाराजजी से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि "समर्थ गुरू रामदास ने अपनी मां के अंधेपन का इलाज किया था। दुनिया में ऐसा दूसरा संत नहीं है।" यह कहकर महाराजजी ने एक अनार मंगवाया और उसको मसलकर उसका जूस पी गये और उन्होंने अपने कंबल को अपने ऊपर ओढ़ लिया। उनकी आंखों से खून निकल रहा था। इसके बाद महाराजजी ने उस व्यक्ति से कहा कि तुम्हारी दृष्टि वापस आ जाए तो अपने व्यापार से रिटायर हो जाना और अपनी आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ना। </p>
<p dir="ltr">अगले दिन डॉक्टर आये और जब उन बुजुर्ग की आंखों का परीक्षण किया तो चौंक गये। उन्होंने कहा कि यह असंभव है। किसने किया यह? लोगों ने बताया महाराजजी ने। डॉक्टर ने पूछा कि वे अब कहां हैं तो लोगों ने बताया कि वे तो जा चुके हैं। डॉक्टर भागते हुए स्टेशन पहुंचे। महाराजजी ट्रेन में सवार हो चुके थे। डॉक्टर दौड़कर बोगी में पहुंच गये। डॉक्टर को देखते ही महाराजजी ने कहा, देखो ये कितने काबिल डॉक्टर हैं। इन्होंने उस बुजुर्ग व्यक्ति की आंख ठीक कर दी। ये बहुत अच्छे डॉक्टर हैं। </p>
<p dir="ltr">हालांकि तीन चार महीने बाद ही वे बुजुर्ग अपने आपको रोक नहीं पाये और काम पर वापस लौट गये। उसी दिन उनके आंखों की रोशनी फिर से चली गयी। </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव, पहला संस्करण, 1979, पेज- 318)<br>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWEfTpuggmFX_wDs5uC8c6oukJqtle5cj8gAgxnVHjTuRFufKR4NgEJbqm4yKeCC1y-w_1heAEKMq8JIA_uVNCbncbhXY2zqdYZ2SJKHdK239YUFCaRzTVn6bXdBdC5bkw5bXNbkhzFdU/s1600/FB_IMG_1447736084321.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWEfTpuggmFX_wDs5uC8c6oukJqtle5cj8gAgxnVHjTuRFufKR4NgEJbqm4yKeCC1y-w_1heAEKMq8JIA_uVNCbncbhXY2zqdYZ2SJKHdK239YUFCaRzTVn6bXdBdC5bkw5bXNbkhzFdU/s640/FB_IMG_1447736084321.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-64572539128627292342015-11-14T06:55:00.001-08:002015-11-14T06:55:47.933-08:00गुरु भक्ति<p dir="ltr">एक दिन मैं महाराजजी से कुछ दूरी पर उनके सामने ही बैठा हुआ था। बहुत सारे भक्त उनके आसपास बैठे हुए थे। बात हो रही थी। हंसी मजाक चल रहा था। कुछ उनके पैरों की मालिश कर रहे थे। लोग उन्हें सेव और फूल दे रहे थे। वे उन चीजों को प्रसाद रूप में लोगों में वितरित कर रहे थे। सब तरफ प्रेम और करुणा बरस रही थी। लेकिन मैदान में कुछ दूरी पर मैं अलग ही अवस्था में बैठा हुआ था। </p>
<p dir="ltr">मैं सोच रहा था कि सब ठीक है लेकिन यह सब तो एक मूर्तरूप से जुड़ा प्रेम है। मैंने यह कर लिया अब मुझे इसके परे जाना है। वे कुछ खास नहीं हैं हालांकि वे सबकुछ हैं। मैं दुनिया में जहां कहीं भी हूं, उनके चरणों में हूं। मैं उनके साथ जिस अवस्था में जुड़ा हूं उसके लिए शरीर की मर्यादा का होना जरूरी नहीं है। जागृत अवस्था में हम एक हैं। </p>
<p dir="ltr">तभी मैंने देखा कि महाराजजी एक बुजुर्ग भक्त के कान में कुछ कह रहे हैं और वह बुजुर्ग भक्त भागकर मेरे पास आया और मेरे पैर छूकर खड़ा हो गया। मैंने पूछा, "आपने यह क्यों किया?" उन्होंने कहा, "महाराजजी ने कहा है। उन्होंने कहा कि मैं और वो एक दूसरे को अच्छे से समझते हैं।" </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रामदास, जर्नी आफ अवेकनिंग, ई बुक, पेज- १२५)<br>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg49pjZ2X24PX6-yDDr15h3-Ts_0BZhiyi9gYftG-hihn0vbduNVqDyKk1jTwm7lc78IGpotS8CtzBrYmpQvjL04osv4N9OGVRFX1AeyBbYxx8ZSL0oUx_skJ7EiNuUrdvTIbARAWrwyqk/s1600/FB_IMG_1447491034980.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg49pjZ2X24PX6-yDDr15h3-Ts_0BZhiyi9gYftG-hihn0vbduNVqDyKk1jTwm7lc78IGpotS8CtzBrYmpQvjL04osv4N9OGVRFX1AeyBbYxx8ZSL0oUx_skJ7EiNuUrdvTIbARAWrwyqk/s640/FB_IMG_1447491034980.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-54499834955036088492015-11-07T07:28:00.001-08:002015-11-07T07:28:46.868-08:00छूटे प्राण वापस आ गये<p dir="ltr">करीब ४० वर्ष पूर्व मेरी पत्नी बहुत बीमार हो गयी ! बचने की कोई उम्मीद नही थी ! मेरे पास एक ही रास्ता था , बाबा का निरन्तर स्मरण! जब पता चला बाबा जी बरेली डाक्टर भण्डारी के घर आये है तो वहाँ भागा पर बाबा वहाँ न मिले। आठ बजे रात पेड़ के नीचे बैठा बाबा को याद करता रहा! तब एक व्यक्ति से पता चला कि बाबा जी कमिश्नर लाल साहेब के घर पर हैं। मै वहाँ पहँचा परन्तु चपरासी ने भीतर नही जाने दिया। मैं बाहर ही महाराजजी को दीनता से अंतरमन में पुकारता रहा और तभी बाबा जी बाहर निकल आये मेरी आर्त पुकार सुनकर और कहा, "रिक्शा ला तेरे घर चलते है!" </p>
<p dir="ltr">लाल साहब की गाडी पर बाबा नही बैठे ! रिक्शे से हम घर आ गये ! बाबा सीधे मेरी पत्नी के कमरे में पहुंचे और उनके पलंग के पास ही कुर्सी पर बैठ गये ! तभी उन्होने अपने चरण उठाकर पलंग पर रख दिये। पत्नी ने प्रयास करके किसी तरह अपना सिर बाबा के चरणों पर रख दिया, इसके साथ ही उनकी रही सही नब्ज भी छूट गयी। सब हाहाकार करके रो उठे पर बाबा जी चिल्ला कर बोले, "नहीं, मरी नही है, आन्नद में है !" और ऐसा कहकर पत्नी के गाल पर चपत मारी और उसकी नब्ज वापिस आ गई। तब रात १०.३० बजे बाबा ने हिमालया कम्बल माँगा। कम्बल आ गया, जिसे बाबा जी ने खुद ओढ लिया और अपना ओढा कम्बल पत्नी पर डाल कर चले गये। </p>
<p dir="ltr">बाबा दूसरे दिन फिर आये और पत्नी की नब्ज उनके चरण छूते फिर छूट गयी! तब बाबा बोले "माई हमे बहुत परेशान करती है! हमें बैठना पड़ जाता है !" और इसके बाद पत्नी बिना इलाज के पूर्णता: स्वस्थ <u>हो</u> गई! </p>
<p dir="ltr">(प्यारेलाल गुप्ता -- बरेली)</p>
<p dir="ltr">जय गुरूदेव<br>
अनंत कथामृत</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkUiSZ_EGJ4OeKHGGBxKc7df8JvPsfzqOnOOMfqo_FMx5mctrTtO1I4Fxv7bPwMaS6FfbtJnBQ5osCYEWDpyRZmi3A_cw4IXJH9X14Thm1Rc95ihvose-iYmwV4ypw70G0I6iQHjOkLKk/s1600/FB_IMG_1446908726524.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkUiSZ_EGJ4OeKHGGBxKc7df8JvPsfzqOnOOMfqo_FMx5mctrTtO1I4Fxv7bPwMaS6FfbtJnBQ5osCYEWDpyRZmi3A_cw4IXJH9X14Thm1Rc95ihvose-iYmwV4ypw70G0I6iQHjOkLKk/s640/FB_IMG_1446908726524.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-76375843330518603452015-11-03T06:15:00.001-08:002015-11-03T06:15:21.711-08:00गंगाजी में बहता है दूध<p dir="ltr">माघ मेला में महाराजजी अपने भक्तों को बताते रहते थे कि गंगा में पानी नहीं दूध बहता है। एक दिन जब महाराजजी कुछ अन्य भक्तों के साथ गंगाजी में नौका यात्रा कर रहे थे तब कुछ भक्तों ने सोचा कि क्यों न महाराजजी की बात का परीक्षण किया जाए? हालांकि उन्होंने महाराजजी से कुछ नहीं कहा लेकिन महाराजजी ने खुद उनसे कहा कि एक लोटा गंगाजल भरकर ढंक दो। जब वह गंगाजल गिलास में डाला गया तो शुद्ध दूध बन चुका था। एक भक्त ने यह चमत्कार देखा तो सोचा कि थोड़ा सा दूध वह लेकर जाएगा और मेले में दूसरे भक्तों को भी दिखायेगा लेकिन महाराजजी ने गुस्से में उसके हाथ से दूध का वह गिलास छीनकर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया। </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण (1995, पेज- 114-15)</p>
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🌺 !! जय जय नींब करौरी बाबा !! 🌺<br>
🌺 !! कृपा करहु आवई सद्भावा !! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMootfmwSD8-tXblrUBu-ADqnhvcQNm1-OgiGiqaFs0ZcxuWkrTXLMrKAM5vmNuGffKnxpdeBDX_CLzhdXK5YVEwdtXO_CnIn-nMxrK9XXwwUHT0xK4vvYmURMxLkbEYLxGa4qAVRMt0s/s1600/FB_IMG_1446095007358.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMootfmwSD8-tXblrUBu-ADqnhvcQNm1-OgiGiqaFs0ZcxuWkrTXLMrKAM5vmNuGffKnxpdeBDX_CLzhdXK5YVEwdtXO_CnIn-nMxrK9XXwwUHT0xK4vvYmURMxLkbEYLxGa4qAVRMt0s/s640/FB_IMG_1446095007358.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-84118917171459520572015-10-31T08:50:00.001-07:002015-10-31T08:50:42.342-07:00महाराजजी से लैरी ब्रिलियंट की पहली मुलाकात<p dir="ltr">(चेचक उन्मूलन के विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम का नेतृत्व करनेवाले लैरी ब्रिलियंट महाराजजी के कहने पर ही उस स्वास्थ्य महा अभियान में शामिल हुए थे। गूगल डॉट आर्ग के निदेशक रह चुके लैरी ब्रिलियंट के महाराजजी से मिलने की कहानी, उन्हीं की जुबानी)</p>
<p dir="ltr">मेरी पत्नी (गिरिजा ब्रिलियंट) महाराजजी से मिल चुकी थी और इब मुझे ले जाने के लिए अमेरिका लौटकर आयी थी। पहली बार जब मैं महाराज जी से मिला उसकी कहानी कुछ इस प्रकार है। </p>
<p dir="ltr">पश्चिम के मतवाले लोग एक बूढे से मोटे आदमी को घेरे हुए थे जिसने कंबल ओढ़ रखा था। मुझे यह देखकर बहुत नफरत हुई कि वहां मौजूद पश्चिमी लोग उस बूढ़े आदमी का पैर छू रहे थे। पहले दिन तो उन्होंने मेरे ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसी तरह एक दो तीन चार पांच छह नहीं पूरे सात दिन मेरी उपेक्षा करते रहे तो मैं काफी खिन्न हुआ। न मुझे वहां कुछ महसूस हो रहा था और उस बूढ़े आदमी के लिए मेरे मन में कोई मोहब्बत न थी। मैंने महसूस किया कि मेरी पत्नी किसी उन्मादी समूह में फंस गयी है इसलिए एक हफ्ते बाद ही मैं वापस लौटने की तैयारी करने लगा। </p>
<p dir="ltr">हम नैनीताल के एक होटल में ठहरे हुए थे। आठवें दिन मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। शाम को झील के किनारे टहलते हुए मुझे महसूस हुआ कि मेरी पत्नी किसी ऐसी जगह मशगूल हो गयी है जिसमें मैं शामिल नहीं हूं। ऐसे में निश्चित रूप से मेरा विवाह टूट जाएगा। मैंने फूल पेड़, पहाड़ झील सब की तरफ देखकर मन बहलाने की कोशिश की लेकिन मेरा डिप्रेशन कम होने का नाम नहीं ले रहा था। इसके बाद मैंने कुछ ऐसा किया जो जवानी में अब तक मैंने कभी नहीं किया था। मैंने प्रार्थना की। </p>
<p dir="ltr">मैंने भगवान से पूछा, मैं यहां क्या कर रहा हूं? यह आदमी कौन है जिसके लिए लोग इतने मतवाले हो गये हैं? तभी मेरे जेहन में आया कि विश्वास के लिए चमत्कार का होना जरूरी है। मैंने भगवान से कहा, ठीक है मुझमें कोई श्रद्धा नहीं है। आप चमत्कार कीजिए। मैं आकाश में इंद्रधनुष की तरफ देखने लगा। कुछ नहीं हुआ। मैंने तय किया कि अगले दिन मैं यहां से चला जाऊंगा। </p>
<p dir="ltr">अगले दिन विदा लेने के मन से हमने कैंची मंदिर जाने के लिए टैक्सी मंगवाई। मैंने मन में तय किया कि मैं महाराजजी को साफ बता दूंगा कि मुझे वे पसंद नहीं आये। हम सुबह सुबह जब कैंची पहुंचे तब तक वहां लोग नहीं आये थे। हम बरामदे में उनके तख्त के सामने बैठ गये। महाराजजी अभी कमरे से बाहर नहीं आये थे। तख्त पर कुछ फल रखा था जिसमें से एक सेब जमीन पर गिर गया था। मैं उसे उठाकर तख्त पर रखने के लिए झुका तभी महाराजजी बाहर आ गये। उन्होंने अपने हाथ को मेरे सिर पर रखा और जमीन की तरफ दबाव से झुका दिया। मेरे शरीर की ऐसी स्थिति बन गयी कि मैं घुटनों के बल झुककर उनके पैरों को छू रहा था। जबर्दस्ती। बिना किसी भाव के। यह सब कितना ऊटपटांग था। फिर उन्होंने मुझसे पूछा, "कल कहां थे? लेक पर थे?" उन्होंने लेक शब्द अंग्रेजी में कहा। जब उनके मुंह से मैंने लेक शब्द सुना तो मेरे पूरे शरीर में झुनझुनी सी दौड़ गयी। मैं बहुत अजीब महसूस कर रहा था। उन्होंने फिर मुझसे पूछा, "लेक पर क्या कर रहे थे?" </p>
<p dir="ltr">मैं स्तब्ध था। फिर उन्होंने खुद ही कहा, "घुड़सवारी कर रहे थे?"</p>
<p dir="ltr">"नहीं।"<br>
"नौका चला रहे थे?"<br>
"नहीं"<br>
"तैराकी कर रहे थे?"<br>
"नहीं"<br>
फिर वो मेरी तरफ झुके और धीरे से बोले "भगवान से बात कर रहे थे?" </p>
<p dir="ltr">जब उन्होंने यह आखिरी वाक्य कहा तो मैं गिर पड़ा और बच्चे की तरह रोने लगा। उन्होंने मेरी दाढ़ी पकड़कर उठाते हुए कहा, "क्या तुमने कुछ मांगा?" यह मेरे लिए मेरी दीक्षा जैसा था। </p>
<p dir="ltr">तब तक और लोग वहां आने लगे थे। वे सब मुझे बड़े दुलार भाव से देख रहे थे। मुझे लगा आज जो मेरे साथ हो रहा है, इन लोगों के साथ पहले हो चुका है। एक तुच्छ सा सवाल "क्या कल तुम झील के किनारे गये थे?" जिसका किसी और के लिए कोई मतलब नहीं हो सकता था, उसने वास्तविकता की मेरी धारणा को छिन्न भिन्न कर दिया था। यह स्पष्ट हो गया था कि महाराजजी हर भ्रम के बीच सत्य को देखते हैं। वे सबकुछ जानते हैं। इसके बाद उन्होंने मुझसे पूछा, " क्या तुम एक किताब लिखोगे?" </p>
<p dir="ltr">यह मेरा स्वागत था। इसके बाद अब उनके पैरों को मैं अपने हाथ से दबाना चाहता था। </p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMNFUEhdgXshdWs5QJzRxujnSsX82JhuitcAGLunP8RZiB0-hW3G0ubA-wUtVZsBKgTRduzFCILGBragz6ma4Uz1YXXl2XFYSfKCJOjZA5MdD-VS7PNMGlbqCWrIP6JjGmwRS283PacUM/s1600/FB_IMG_1446303722341.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMNFUEhdgXshdWs5QJzRxujnSsX82JhuitcAGLunP8RZiB0-hW3G0ubA-wUtVZsBKgTRduzFCILGBragz6ma4Uz1YXXl2XFYSfKCJOjZA5MdD-VS7PNMGlbqCWrIP6JjGmwRS283PacUM/s640/FB_IMG_1446303722341.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-89572352300796541102015-10-25T07:43:00.001-07:002015-10-25T07:43:05.730-07:00प्रसाद लो<p dir="ltr">एक बार लखनऊ में महाराजजी ने नगर निगम के कुछ अधिकारियों को साथ लिया और सबसे गरीब मुहल्ले की तरफ सड़क नाली पानी की हालत देखने पहुंच गये। वहां पहुंचकर उन्होंने एक मुसलमान को अपने पास बुलाया और बोले- मुझे भूख लगी है। </p>
<p dir="ltr">मुसलमान ने कहा, लेकिन महाराजजी मेरे पास खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है। </p>
<p dir="ltr">महाराजजी ने कहा, "तूने घर के छप्पर में दो रोटी नहीं छिपा रखी है दुष्ट?"</p>
<p dir="ltr">उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि महाराजजी को कैसे पता चला? वह छप्पर में से दो रोटी निकाल लाया। एक रोटी महाराजजी ने खाई और दूसरी रोटी अधिकारियों को दे दी जिसमें हिन्दू ब्राह्मण भी थे। महाराजजी ने कहा, "प्रसाद लो।"</p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण, 1995, पेज- 43-45)</p>
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🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbIxI8Zb8P4UcsiGmbL4QHC1kq9N17NxZ-t3QH7k6dENiAK5tAdh9QBRg8mXyLrCYxVnjnaABGXI8ffhUXF4nRxgLZL0BEGfeBcT433SevPs4NV1W7Kquz6vSZ-T1uTxNMDQ1C9XpLwMc/s1600/IMG_1887211734428.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbIxI8Zb8P4UcsiGmbL4QHC1kq9N17NxZ-t3QH7k6dENiAK5tAdh9QBRg8mXyLrCYxVnjnaABGXI8ffhUXF4nRxgLZL0BEGfeBcT433SevPs4NV1W7Kquz6vSZ-T1uTxNMDQ1C9XpLwMc/s640/IMG_1887211734428.jpeg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-42151610011180804802015-10-19T12:16:00.001-07:002015-10-19T12:16:59.280-07:00लंदन में महाराजजी का दर्शन<p dir="ltr">एक दिन मैं डबल डेकर बस से लंदन में यात्रा कर रहा था. मैं प्रवेश द्वार के पास ही बैठा हुआ था. बस का कंडक्टर ऊपरी डेक पर था. बस कमोबेश पूरी खाली थी. इतने में बस एक जगह रुकी और एक भिखारी बस में सवार हुआ. उसने चीथड़े पहन रखे थे और उसके हाथ में एक नीला और एक लाल कंबल था. वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और बहुत ही अच्छी मुस्कुराहट से मेरी तरफ देखने लगा. मानों वह मेरी बगल वाली सीट पर बैठना चाहता था. मैं एक तरफ खिसक गया और वह आदमी मेरी बगल में बैठ गया. </p>
<p dir="ltr">मैं अपना मुंह घुमाकर खिड़की की तरफ देखने लगा. खिड़की की तरफ देखते हुए मुझे उस बुजुर्ग आदमी के बारे में सोचते हुए मुझे उस बुजुर्ग आदमी की मोहक मुस्कान याद आ रही थी. अचानक मेरे मन में महाराजजी के बारे में विचार आने लगा. उनके बारे में सुन रखा था कि वे भी एक बुजुर्ग आदमी हैं जो कंबल रखते हैं. महाराजजी की याद आते ही मैंने उस बुजुर्ग को देखने के लिए अपना चेहरा घुमाया. अरे! वह बुजुर्ग तो गायब हो चुके थे. </p>
<p dir="ltr">रास्ते में बस भी कहीं नहीं रुकी थी इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता था कि वह बुजुर्ग कहीं उतर गये होंगे. पूरी बस में वे कहीं नजर नहीं आ रहे थे. पूरी सड़क भी खाली थी. उस बुजुर्ग भिखारी का कहीं कोई पता नहीं चला. मैं जानता था कि मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ लेकिन वह कहां चला गया? </p>
<p dir="ltr">अगले दिन मेरे कुछ मित्र मेरे पास आये और उन्होंने बताया कि बीते दिन सुबह (ठीक वही वक्त जिस वक्त बस मैं बस में था) उन्हें प्रेरणा मिली कि वे मेरे लिए टिकट की व्यवस्था करें और अपने साथ महाराजजी का दर्शन करने के लिए लेकर आयें. यह सब बहुत अटपटा था. हालांकि मेरे दोस्तों ने जो रकम आफर की थी वह अच्छी खासी थी लेकिन इतने से मेरे जैसे विद्यार्थी के लिए भारत जाने का पर्याप्त इंतजाम नहीं हो रहा था. </p>
<p dir="ltr">लेकिन अभी महाराजजी का एक चमत्कार होना और बाकी थी. इंग्लैंड में मेरे स्कूल से हर साल सेमेस्टर पूरा होने पर घर जाने का पूरा खर्चा मिलता था. मैंने इसके लिए आवेदन किया. लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मुझे उसकी दोगुनी रकम का चेक मिला जितना मैंने आवेदन किया था. मैंने इस बारे में स्कूल प्रशासन को बताया तो उन्होंने स्कूल का एकाउण्ट देखकर सूचित किया कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है. अंतत: मुझे अहसास हो गया कि महाराजजी मुझे दर्शन के लिए बुला रहे हैं. </p>
<p dir="ltr">एक महीने के भीतर मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर था जहां से मैं सीधे कैंची धाम आश्रम आ गया. जब मैं महाराजजी के दर्शन के लिए जा रहा था तो मैंने मन ही मन तय किया कि मैं महाराजजी से उस भिखारी के बारे में जरूर पूछूंगा. लेकिन जैसे ही मैं महाराजजी के सामने पहुंचा तो मैंने देखा कि उन्होंने वही कंबल ओढ़ रखा है जो उस दिन लंदन में भिखारी के हाथ में देखा था. उनके चेहरे पर बिल्कुल वही मुस्कान थी जो उस दिन बस में दिखाई दी थी. उन्होंने बिल्कुल उसी अंदाज में मेरी तरफ देखा. मेरे पास पूछने के लिए कुछ नहीं बचा था. ये वही थे जो उस दिन मुझे लंदन की बस में मिले थे. मेरे साथ जो हुआ और जो दिख रहा था उससे मैं महाराजजी की करुणा और कृपा से भर गया. </p>
<p dir="ltr">हीथर थॉम्पसन (ब्रिटेन)</p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6IUpdrKq1shoy_M6S71wI05iWobBpi1V6u0_85ba-KEJMFEGfrLbi_2IUiDvuhcgXpfIVcZZuf6EI74FN2W3R2A8wmAbufouj7xyQZn8BP61Nn8IPhJFlwusI36HYbGute09lQ47eMag/s1600/FB_IMG_1445067371885.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6IUpdrKq1shoy_M6S71wI05iWobBpi1V6u0_85ba-KEJMFEGfrLbi_2IUiDvuhcgXpfIVcZZuf6EI74FN2W3R2A8wmAbufouj7xyQZn8BP61Nn8IPhJFlwusI36HYbGute09lQ47eMag/s640/FB_IMG_1445067371885.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-15832578780055607012015-10-17T05:48:00.001-07:002015-10-17T05:48:37.421-07:00बाबा के सीने पर सांप और बिच्छू<p dir="ltr">गंगोत्री से ऋषिकेश लौटते वक्त रात के आठ बज गया तो बाबाजी धराली नामक एक जगह पर रुके. बाबाजी के साथ जितने भक्त थे उनमें से अधिकांश धर्मशाला में रुके. उमादत्त शुक्ला चाय की एक दुकान में ठहरे जबकि बाबा जी उसी चाय की दुकान के पीछे एक टिम्बर हाउस में रुके. सुबह जब गिरीश बाबाजी के दर्शन के लिए गये तो देखा कि बाबाजी के कंबल पर ठीक सीने के ऊपर एक सांप और बिच्छू लड़ रहे हैं. वे भयवश चिल्ला पड़े लेकिन जैसे ही बाबाजी की नींद खुली सांप और बिच्छू दोनों गायब हो गये. </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रविप्रकाश पांडे राजीदा, द डिवाइन रियलिटी (दूसरा संस्करण),  2005, पेज- 249)</p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCU5jsKCvQwo3_2JT7P4KrHbv68a_aYjpoma2jSM1srtKl0F8MV9GJtdctDcoIa5Vx1FUDIbkjmZd7WKH6G6ZmkkbnbX995sB8ejAlu8fD2Z94Oq-nBHqdOkyPei0mcNHkGV2H4Gr9DyM/s1600/FB_IMG_1435286233897.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCU5jsKCvQwo3_2JT7P4KrHbv68a_aYjpoma2jSM1srtKl0F8MV9GJtdctDcoIa5Vx1FUDIbkjmZd7WKH6G6ZmkkbnbX995sB8ejAlu8fD2Z94Oq-nBHqdOkyPei0mcNHkGV2H4Gr9DyM/s400/FB_IMG_1435286233897.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-33505182216466217582015-10-13T21:04:00.001-07:002015-10-13T21:04:35.624-07:00सब तरफ महाराज जी<p dir="ltr">महाराजजी के एक भक्त के मन में संशय था कि एक ही वक्त में महाराज जी अलग अलग जगहों पर कैसे हो सकते हैं? महाराज जी ने उनसे तीन बार कहा, जाओ जरा उन कमरों को देखकर आओ कि वहां क्या चल रहा है. आखिरकार वह भक्त वहां से उठकर कमरों की तरफ चला गया. वह हर कमरे में जाता तो महाराज जी को पाता. छह कमरे थे और सबमें से महाराजजी बाहर निकलते दिखाई दे रहे थे. </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव, पेज- 170)<br>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXNvxZWs-M7WPyJpTSeKy3r4JnRJsgHRt00HPzPLl3qJLDzAN8sLxsI7PrdFTfYl1Dar_i2V1ykOXL8QoLpbIfRAsMiACT_lrImenfZ07Krqajs2lO7a2rU7G_CnGVft3gvxXjhAlJGJ4/s1600/FB_IMG_1444795356015.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXNvxZWs-M7WPyJpTSeKy3r4JnRJsgHRt00HPzPLl3qJLDzAN8sLxsI7PrdFTfYl1Dar_i2V1ykOXL8QoLpbIfRAsMiACT_lrImenfZ07Krqajs2lO7a2rU7G_CnGVft3gvxXjhAlJGJ4/s640/FB_IMG_1444795356015.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-50436253555076298302015-10-13T20:48:00.001-07:002015-10-13T20:48:42.211-07:00रेल में रामायण पाठ<p dir="ltr">प्रयाग स्टेशन के पास अपने आवास पर रेलवे आफिसर हेमचंद्र जोशी ने अखण्ड रामायण का पाठ रखा था. बहुत सारे स्थानीय लोग उस अखंड रामायण पाठ में शामिल थे. उत्तरकांड की समाप्ति के बाद आरती और प्रसाद वितरण का कार्यक्रम होना था तभी दादा (सुधीर दादा मुखर्जी) के भतीजे वहां आये और उन्होंने सूचित किया कि महाराजजी चर्चलेन में पधार चुके हैं. </p>
<p dir="ltr">महाराजजी श्री मां और कुछ अन्य भक्तों के साथ अभी अभी दक्षिण की यात्रा से लौटे थे. जब ट्रेन इलाहाबाद से दो सौ किलोमीटर दूर रही होगी तो महाराजजी ने कहा कि खिड़की खोल दो. जैसे ही खिड़की खुली सबको रामायण का सुन्दर और संगीतमय पाठ सुनाई दिया. कुछ सुरीली आवाजों में संगीतमय पाठ हो रहा था. भक्तों को लगा कि जरूर किसी स्थानीय गांव में रामायण का पाठ चल रहा है. कुछ देर तक उन्होंने उत्तरकांड का संगीतमय पाठ सुनाई देता रहा. आश्चर्यजनक रूप से ट्रेन कई किलोमीटर आगे चली आई लेकिन संगीतमय पाठ उसी तरह सुनाई देता रहा. लेकिन बाबा ने जैसे ही खिड़की बंद करवाई रामायण का पाठ सुनाई देना बंद हो गया. महाराजजी ने जब दोबारा खिड़की खुलवाई तो उत्तरकांड का पाठ फिर से सुनाई देने लगा. </p>
<p dir="ltr">महाराजजी की लीला का यह क्रम इलाहाबाद तक इसी तरह चलता रहा और सब रामायण पाठ को सुनने का आनंद लेते रहे. जब किसी भक्त ने उनसे पूछा कि महाराजजी यह पाठ कहां हो रहा है तो महाराजजी ने कोई जवाब नहीं दिया. जब भक्त महाराजजी के साथ चर्चलेन पहुंचे तब उन्हें पता चला कि रामायण का पाठ इलाहाबाद में एक भक्त के घर पर चल रहा था. </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा', द डिवाइन रियलिटी, 2005, दूसरा संस्करण, पेज- 180-181) <br>
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🌺जय जय नींब करौरी बाबा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4tGWO20IdvOEGBvAdop2u_Y2aBf6Wjiluzq6k3BxkDaukkLzbnbhuIR98mdIPcywh4pqJdtSfbBro_q2xLG5RCSl17tOVVwR0iTYMjsQL62nsSQ_5-K2D2oX1OHCO-dzSKKfASDBYbzM/s1600/FB_IMG_1444663153303.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4tGWO20IdvOEGBvAdop2u_Y2aBf6Wjiluzq6k3BxkDaukkLzbnbhuIR98mdIPcywh4pqJdtSfbBro_q2xLG5RCSl17tOVVwR0iTYMjsQL62nsSQ_5-K2D2oX1OHCO-dzSKKfASDBYbzM/s640/FB_IMG_1444663153303.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-21761005517978347052015-10-12T08:26:00.001-07:002015-10-12T08:26:20.770-07:00महाराजजी अदृश्य हो गये<p dir="ltr">एक बार कांग्रेस के कुछ पचास साठ कार्यकर्ता महाराज जी के दर्शन के लिए आ रहे थे. उस वक्त महाराजजी हनुमानगढ़ में थे. महाराजजी ने दूर से देख लिया कि वे लोग आश्रम की तरफ आ रहे हैं. उन्होंने एक भारतीय संन्यासी रामदास को साथ लिया और पहाड़ी से नीचे उतरकर एक देवी मंदिर में चले गये. </p>
<p dir="ltr">इधर पार्टी के लोग जब आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने महाराजजी के बारे में पता किया. वहां लोगों ने बता दिया कि वे पहाड़ी से नीचे की तरफ गये हैं. वे लोग नीचे उतरकर उसी मंदिर के पास पहुंच गये जहां महाराजजी रामदास के साथ मंदिर के बाहर ही बैठे हुए थे. वे लोग साठ फीट दूर खड़े होकर मंदिर के चारों तरफ देखने लगे लेकिन उन लोगों को न महाराजजी दिखाई नहीं दिये और न ही रामदास. उन्हीं के सामने खड़े होकर वे लोग नींब करौली बाबा के बारे में आपस में पूछताछ कर रहे थे लेकिन महाराजजी उनको दिखाई नहीं दे रहे थे. </p>
<p dir="ltr">तभी रामदास को बड़ी जोर की खांसी आने को हुई. वे हशीश पीते थे और उनको खांसी आती रहती थी. उन्होंने मुंह दबाते हुए महाराज जी की तरफ देखा कि कहीं खांसने पर उनका पता न चल जाए, महाराजजी ने उनसे कहा, 'चिंता मत करो. जितना खांस सकते हो खांस लो.' और रामदास तब तक खांसते रहे जब तक उन्हें आराम नहीं मिल गया.</p>
<p dir="ltr">लेकिन वहां मौजूद अन्य लोगों को न तो रामदास की खांसी सुनाई दी और न ही उन दोनों की बातचीत. जब कांग्रेसवाले हारकर वहां से चले गये उसके बाद ही महाराजजी प्रकट हुए. </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण, 1995, पेज- 115) </p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxAedOUlKoC_uS0NkQT9-Lmt4HpaXD6OGeGqxUaPPdty3n6DdmC7VZgxOM6RXnUi9YZbXM_8d4EzobiC1LYpLOZ-Kzd4RvxEVPKT454f76D8Pgd56OLBa-FrQYcmzMCyXgkMf3YzEoYFk/s1600/FB_IMG_1444072201817.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxAedOUlKoC_uS0NkQT9-Lmt4HpaXD6OGeGqxUaPPdty3n6DdmC7VZgxOM6RXnUi9YZbXM_8d4EzobiC1LYpLOZ-Kzd4RvxEVPKT454f76D8Pgd56OLBa-FrQYcmzMCyXgkMf3YzEoYFk/s640/FB_IMG_1444072201817.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-56698150059064015692015-08-22T09:30:00.000-07:002015-08-22T09:30:02.828-07:00सूखा पेड़ हरा हो गया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
कैंची आश्रम में प्रवेश करते ही करीब बीस पच्चीस मीटर आगे बढ़ने पर एक बड़ी सी शिला है जिस बाबाजी अक्सर भक्तों और आगंतुकों के साथ बैठा करते थे. वहीं पर शिला के बगल में उत्तीस का एक बहुत बड़ा वृक्ष था जो अब सूख चुका था. वह पुराना पेड़ झुका भी हुआ था जिससे इस बात का डर था कि किसी आंधी तूफान में अगर यह गिरा तो लोगों को चोट लग सकती है.<br />
<br />
एक दिन बाबाजी भक्तों के साथ शिला पर बैठे हुए थे कि किसी भक्त ने इस आशंका को महाराजजी के सामने प्रकट करते हुए सुझाव दिया कि पेड़ को काट देना चाहिए. बाबाजी ने कहा कि इसकी जड़ो में थोड़ा सा गंगाजल डाल दो. यह फिर से हरा हो जाएगा.<br />
<br />
श्रीमां एक केन में गंगाजल लेकर आईं और उन्होंने पूर्णानंद को दिया. पूर्णानंद ने वह गंगाजल जड़ों में चारों तरफ डाल दिया. वृक्ष धीरे धीरे पहले जैसा हरा हो गया. और सालों साल अपने पुनर्जीवन की कहानी कहता रहा.<br />
<br />
#महाराजजीकथामृत<br />
<br />
(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा' द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, 2005, पेज- 122-123)<br />
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Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-26381554600116014362015-08-16T20:05:00.001-07:002015-08-16T20:05:34.701-07:00विधवा के बेटे को जीवनदान<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">एक बार बाबा जी कुछ भक्तों के साथ हनुमानगढ़, नैनीताल के लिए जा रहे थे. हल्द्वानी से कुछ पहले उन्होंने अपने ड्राइवर रामानन्द को और तेज चलने के लिए कहना शुरू किया. काठगोदाम और जुइलीकोट के बीच एक निर्जन सी जगह पर उन्होंने कार को रोकने के लिए कहा और उतरकर आगे बढ़े. </p>
<p dir="ltr">जंगल में एक वृद्ध विधवा अपने मृत बेटे की लाश पर विलाप कर रही थी. कुछ समय पहले उसे सांप ने काट लिया था और उसका निधन हो चुका था. उन्होंने महिला से कहा "क्यों रो रही हो?" "यह तुम्हारा इकलौता बेटा था?" "तुम्हारे पति भी जिन्दा नहीं है." यह सब सुनकर महिला और तेज विलाप करने लगी. तब बाबा ने कहा "क्यों रो रही हो. तुम्हारा बेटा मरा नहीं है. चुप हो जाओ." बाबा ने अपने हाथों से नौजवान के शरीर को रगड़कर स्पर्श किया और उसके निर्जीव शरीर में प्राण का संचार हो गया. वह जीवित हो उठा और थोड़ी ही देर में वह होश में आ गया. </p>
<p dir="ltr">बाबा तत्काल कार की तरफ लौट आये और वहां से चले गये. उन्होंने महिला को आभार जताने का भी अवसर नहीं दिया. </p>
<p dir="ltr">#महाराजजीकथामृत</p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडे"राजीदा" द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण 2005, पेज-174-177)</p>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxiB9AMB9uK8407DHd-Jq6rTg7MMFvxrWBu3OJSDCgDH2qRFztWAX-kNoOyjk51Cgk7WXSs0Xvutr8X5HGFSSPqeUBfmYVHYfjfKFRuueLuaJSCPLt8FoHUE3EvafLdGMunYy3CmgG8lk/s1600/FB_IMG_1439444193296.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxiB9AMB9uK8407DHd-Jq6rTg7MMFvxrWBu3OJSDCgDH2qRFztWAX-kNoOyjk51Cgk7WXSs0Xvutr8X5HGFSSPqeUBfmYVHYfjfKFRuueLuaJSCPLt8FoHUE3EvafLdGMunYy3CmgG8lk/s400/FB_IMG_1439444193296.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-1810182397666694102015-08-05T01:40:00.001-07:002015-08-05T01:40:34.155-07:00खिड़की में टिकट<p dir="ltr"><u><u>महाराज</u></u> जी एक भक्त के साथ ट्रेन के पहले दर्जे में यात्रा कर रहे थे. भक्त को लगा कि टीटीई के आने तक टिकट महाराजजी को दे देंगे तो सुरक्षित रहेगा. </p>
<p dir="ltr">महाराजजी ने भक्त की तरफ देखा और पूछा "यह किसलिए है?" महाराज जी ने यह कहते हुए दोनों टिकट चलती ट्रेन की खिड़की से बाहर फेंक दिया.  </p>
<p dir="ltr">महाराजजी अपनी चर्चा में मगन हो गये लेकिन इधर भक्त टिकट को लेकर चिंतित था. अंतत: कम्पार्टमेन्ट के दरवाजे पर टीटीई आया और उसने टिकट के लिए पूछा. भक्त महाराज जी से टिकट के लिए कहने में थोड़ा सकुचाया लेकिन फिर कह दिया कि टीटीई टिकट के लिए पूछ रहा है. </p>
<p dir="ltr">महाराजजी ने खिड़की में हाथ डाला और दोनों टिकट टीटीई को दे दिये और हंसते हुए भक्त से बोले, "तुम इसी के लिए इतना परेशान थे?" </p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव http://maharajji.com/Miracle-of-Love/train-tickets-out-the-window.html) <br>
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🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhVwRg3mXjFkvxajM5TpAbcfP_duwj0_VIwNGQE7NbZUl-SK-y4Mj5xTgutUXKvGzPjvKlm_HAWtIcFj_yTWvUjvL9T3VDENU8mN49Mglp1sFqYBTnvFhaFpafEuiF2UgwXRoO-Rujr-8/s1600/maharaj-ji_007a_web.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhVwRg3mXjFkvxajM5TpAbcfP_duwj0_VIwNGQE7NbZUl-SK-y4Mj5xTgutUXKvGzPjvKlm_HAWtIcFj_yTWvUjvL9T3VDENU8mN49Mglp1sFqYBTnvFhaFpafEuiF2UgwXRoO-Rujr-8/s400/maharaj-ji_007a_web.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-44055935540564116912015-08-01T19:51:00.001-07:002015-08-01T19:51:37.348-07:00बुलेटप्रूफ कंबल<p dir="ltr">1943 में महाराज जी फतेहगढ़ पधारे थे. वे जिस घर पहुंचे वहां बुजुर्ग दंपत्ति ही रहते थे. उनका जवान बेटा बर्मा में युद्ध लड़ रहा था. घर पहुंचने के बाद महाराज जी ने रात में वहीं आराम करने के लिए कहा. बुजुर्ग दंपत्ति के पास दो ही चारपाई थी. उन्होंने एक चारपाई और कंबल रात में विश्राम करने के लिए महाराज जी को दिया. </p>
<p dir="ltr">महाराज जी आराम करने लगे. वे रातभर कराहते रहे और बेचैन रहे. वे बुजुर्ग दंपत्ति बैठकर महाराज की देखते रहे करीब चार बजे उनकी कराह बंद हुई और साढ़े चार बजे बेडशीट को लपेटकर बुजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा "इसे गंगाजी में प्रवाहित कर दो. वहां प्रवाहित करना जहां गंगाजी गहरी हों. और ध्यान रखना कोई देखे नहीं वर्ना पुलिस पकड़ लेगी."</p>
<p dir="ltr">उन्होंने वैसा ही किया जैसा महाराजजी ने कहा था. लेकिन रास्ते में उन्होंने महसूस किया कि इसमें गोलियों जैसा कुछ भरा हुआ है. लौटकर आये तो महाराज जी ने कहा "चिंता मत करो. तुम्हारा बेटा एक महीने में आ जाएगा." </p>
<p dir="ltr">करीब एक सप्ताह बाद जब उनका बेटा लौटकर आया तो उसने बताया कि वह मौत के मुंह से निकलकर आ रहा है. युद्ध के दौरान उसकी कंपनी को दुश्मनों ने घेर लिया था और उसके सारे साथी मारे गये. सारी रात गोलीबारी होती रही और चार बजे जब जापानी फौज को लगा कि सारे लोग मारे जा चुके हैं तो वे चले गये. भारतीय फौज की दूसरी टुकड़ी सुबह साढ़े चार बजे वहां पहुंची और वह जिन्दा बचनेवाला अकेला बचा था. (यह वही रात थी जिस रात महाराज जी वहां पधारे थे.)</p>
<p dir="ltr">(रामदास, मिराकल आफ लव,  दूसरा संस्करण, 1979, पेज-98- 99)</p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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राम! राम! राम! राम! राम!</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh_RrGDWOQnP3Kfuv4LdyweG5r1QL1V1xQAoW6Sr3RnX3POz9S-RUKve12HqTQOm8Vg1nlFjQ6nQDn2i_TKRir_y1x7-mt_dw7CBGOAKEh5DN2w6rgglz7BZ607Itt-c0WTq91h3cm21U/s1600/FB_IMG_1438421743989.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh_RrGDWOQnP3Kfuv4LdyweG5r1QL1V1xQAoW6Sr3RnX3POz9S-RUKve12HqTQOm8Vg1nlFjQ6nQDn2i_TKRir_y1x7-mt_dw7CBGOAKEh5DN2w6rgglz7BZ607Itt-c0WTq91h3cm21U/s400/FB_IMG_1438421743989.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-19453220715507997182015-07-24T22:30:00.001-07:002015-07-24T22:30:00.881-07:00अदृश्य होकर पहुंच गये<p dir="ltr">उस वक्त बाबाजी के साथ बहुत सारे अन्य भक्त भी बद्रीनाथ तीर्थाटन पर गये थे. तब यात्रा और भी कष्टकारी रहती थी क्योंकि बसें पीपलकोटी तक ही जाती थीं. </p>
<p dir="ltr">तुलाराम शाह, हब्बा और परिवार, गिरीश और उमादत्त शुक्ला उनके साथ थे. काली कमलीवाले धर्मशाला के प्रबंधक श्रीमान नौटियाल को पहुंचने की सूचना पहले ही दे दी गयी थी. नौटियाल जी ने देवदर्शन में बाबाजी का स्वागत रखा था. बड़ी संख्या में लोग भी बाबा का स्वागत दर्शन के लिए पहुंचे थे. डंडी पर सवार बाबाजी भक्तों संग वहां पहुंचे और भीड़ के बीच से गुजरकर धर्मशाला पहुंच गये लेकिन वे और भक्त किसी को दिखाई नहीं दिये. </p>
<p dir="ltr">धर्मशाला पहुंचकर उन्होंने सबको वहां रुकने के लिए कहकर खुद बद्रीवन स्थित गौशाला में निकास करने चले गये. यह सूचना जब नौटियाल जी को मिली तो वे दर्शन के लिए गौशाला आये. नौटियाल जी यह देख सुनकर हैरान थे कि भक्तों सहित बाबाजी यहां पहुंच गये और किसी को दिखाई नहीं दिया, यह कैसे हो सकता है. इतनी छोटी जगह पर ऐसा होना तो नामुमकिन ही है. </p>
<p dir="ltr">बाबाजी उनकी हैरानी पर मुस्कुरा दिये. </p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा', द डिवाइन रियलिटी. दूसरा संस्करण, 2005, पेज- 107)</p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWwjejivwDgqlcxrZL3OCNxF05uX10vrBI2M23pCyhwYZsFXvHaq6MBLSW6BY2mQw84oovSqI2A-HsaKvb58WeKp8RpPMrLpWItKL8eD1QKpbFow7pVjGg9ohK-945lwthGOx7x88QMVo/s1600/FB_IMG_1437656189808.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWwjejivwDgqlcxrZL3OCNxF05uX10vrBI2M23pCyhwYZsFXvHaq6MBLSW6BY2mQw84oovSqI2A-HsaKvb58WeKp8RpPMrLpWItKL8eD1QKpbFow7pVjGg9ohK-945lwthGOx7x88QMVo/s400/FB_IMG_1437656189808.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-28705824765089195772015-07-24T22:10:00.001-07:002015-07-24T22:10:59.417-07:00दिव्य पूरी का प्रसाद<p dir="ltr"><u>एक</u> शाम पत्नी के साथ बाबाजी के दर्शन के लिए हम चर्च लेन गये थे. </p>
<p dir="ltr">वहां सबके लिए प्रसाद की व्यवस्था थी लेकिन क्योंकि हम लोग घर से प्रसाद पाकर आये थे इसलिए हम बाहरवाले कमरे में महाराजजी के पास चले गये जहां वे एक तख्त पर बैठे हुए थे. बाबाजी चुपचाप बैठे हुए थे. मैं उनके चरण को अपने दोनों हाथ में लेकर धीरे धीरे मालिश करने लगा. इतने में बाबाजी ने अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़ा और दो नर्म गर्म मुलायम पुरियां मेरे हाथ पर रख दी. </p>
<p dir="ltr">उनके हाथों से यह दिव्य प्रसाद पाने के बाद मैं चमत्कृत होने से ज्यादा आनंदित था. मैंने दोनों पूरियों को एक पेपर में लपेट लिया और घर लाकर पूरे परिवार में प्रसाद स्वरूप वितरित कर दिया. </p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा', द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, 2005, पेज- 130-131)<br>
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जय जय नींब करौरी <u>बाबा</u>!<br>
कृपा करहु आवई सद्भावा!!<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI1Llm9uoZ-aU2_Gnq13aoT1HQrt27mBpRiWRCW5lAFWOoBSxFOXMtNlwRUqm7eei8qoZ7v2nJ2LoVdUVt1jZ9WSXNT7j02Zg_Lk-j2Sw6dca_pG0n1NqOI6C9nQ3m7OPSu_7EVrWh7bM/s1600/FB_IMG_1437289128034.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI1Llm9uoZ-aU2_Gnq13aoT1HQrt27mBpRiWRCW5lAFWOoBSxFOXMtNlwRUqm7eei8qoZ7v2nJ2LoVdUVt1jZ9WSXNT7j02Zg_Lk-j2Sw6dca_pG0n1NqOI6C9nQ3m7OPSu_7EVrWh7bM/s400/FB_IMG_1437289128034.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-6621501144456021872015-07-22T07:28:00.000-07:002015-07-22T07:28:20.599-07:00परमात्मा ने कर दिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhGcL6LauRKyZkQ3qI28Gmbnmfl-3Brqg31V_BYxhIS1uMItKdaQL4WQGQuFzxw18Q-cUD1CwH2XPCHRJvRWnhO42gBxiGzSoAi4woxt7wPq65Q0koaVplsjKA1u_Llh3BIF_7HfFxWHA/s1600/FB_IMG_1434947325699.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhGcL6LauRKyZkQ3qI28Gmbnmfl-3Brqg31V_BYxhIS1uMItKdaQL4WQGQuFzxw18Q-cUD1CwH2XPCHRJvRWnhO42gBxiGzSoAi4woxt7wPq65Q0koaVplsjKA1u_Llh3BIF_7HfFxWHA/s320/FB_IMG_1434947325699.jpg" width="320" /></a></div>
इलाहाबाद में रामबाग स्थित हनुमान की मूर्ति को महाराज जी 'कन्ट्रोलर जनरल' कहकर संबोधित करते थे.<br />
<br />
एक दिन श्री मां महाराज जी के साथ मंदिर में थीं तो उन्होंने देखा कि पहली मंजिल स्थित हनुमान जी की मूर्ति का दर्शन करने के लिए एक बुजुर्ग महिला सीढियां चढ़ रही हैं. वे बड़ी मुश्किल से सीढ़िया चढ़ पा रही थी. यह देखकर मां द्रवित हो गयीं और उन्होंने इस ओर महाराज जी का ध्यान आकृष्ट किया. बाबाजी ने मंदिर के प्रबंधक से पूछा कि "क्या हनुमान जी नीचे नहीं उतर सकते? माताओं को यहां तक पहुंचने में कितनी दिक्कत होती है."<br />
<br />
प्रबंधक और मंदिर के पुजारी बाबा को जानते थे लेकिन प्रबंधक ने मूर्ति को नीचे स्थापित करने में असमर्थता जाहिर की और कहा कि इस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता.<br />
<br />
बाबाजी ने सिर्फ एक सवाल किया था और प्रबंधक का जवाब सुनकर चले गये लेकिन उस सवाल का जवाब देते हुए ईश्वर ने काम को पूरा कर दिया.<br />
<br />
कुछ ही समय बाद घनघोर बारिश हुई और पुराने मंदिर का वह पिछला हिस्सा गिर गया जहां मूर्ति स्थापित थी. मंदिर के और किसी हिस्से को कोई नुकसान नहीं हुआ. बिल्कुल खड़े अवस्था में हनुमान जी नीचे आकर विराजमान हो गये. हनुमान जी की मूर्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ. बाद में मूर्ति के आसपास नये सिरे से मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया.<br />
<br />
(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा', द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, 2005, पेज- 128)<br />
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br />
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br />
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Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-9805712201555557432015-07-22T07:12:00.001-07:002015-07-22T07:12:20.737-07:00देखो यह बच गया<p dir="ltr">बाबा हनुमानगढ़ की कुटिया में अपने तख्त पर बैठे हुए थे. सहसा वे खड़े हो गये और उन्होंने अपने दोनों हाथ इस तरह से हवा में लहरा दिये जैसे किसी को पकड़ लिया हो. उसी तरह वे कुटिया के बाहर आये और कहने लगे "देखो यह बच गया." </p>
<p dir="ltr">किसी को कुछ समझ नहीं आया. कुछ तो बाबा की इस भाव भंगिमा पर हंसने लगे. लेकिन पूरनचंद्र जोशी कहते हैं कि तीन दिन बाद आश्रम में कानपुर से एक महिला आईं और उन्होंने बहुत श्रद्धा और धन्यवाद भाव से महाराज जी को प्रणाम किया. महिला ने तीन दिन पहले उनके घर में घटी एक घटना के बारे में बताया. </p>
<p dir="ltr">उन्होंने कहा कि तीन दीन पहले अचानक मेरा पांच साल का बच्चा छत से गिर पड़ा. बाबा मैंने तत्काल आपको आवाज लगाई. इतने में नीचे से जा रहे एक व्यक्ति ने बच्चे को हाथ में लोक लिया और मां को वापस करते हुए बोला "देखो यह बच गया." बाबाजी यह सुनकर मुस्कुरा दिये और वहां उपस्थित भक्तों को तीन दिन पहले की वह घटना याद आ गयी.</p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडेय, 'राजीदा' द डिवाइन रियलिटी, दूसरा संस्करण, 2005, पेज- 116-17)</p>
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा! 🌺<br>
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiD5y76lf4xcd6GzbWR94A8WUe1J834fqXbxq70d4G4tvihh3lIii8jLP46ETiE1LZnogkeM-u25zBVzMnB1tA_NprABilSSJ3q4dxEFFqyYMmtiL9uO0cANUPSMn68vbEXLzPb7clhpMM/s1600/FB_IMG_1437302611802.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiD5y76lf4xcd6GzbWR94A8WUe1J834fqXbxq70d4G4tvihh3lIii8jLP46ETiE1LZnogkeM-u25zBVzMnB1tA_NprABilSSJ3q4dxEFFqyYMmtiL9uO0cANUPSMn68vbEXLzPb7clhpMM/s400/FB_IMG_1437302611802.jpg"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-26479272135144972372015-07-22T07:06:00.001-07:002015-07-22T07:06:47.963-07:00शंकर प्रसाद व्यास को हनुमान जी का दर्शन<p dir="ltr"><u>शंकर</u> प्रसाद व्यास ने एक बार बाबा से कहा कि हनुमान जी के बारे में कथाएं तो बहुत सुनी है लेकिन कभी दिव्य रूप में उनका दर्शन नहीं हुआ. बाबा ने कहा, "आंखों से देख पाने की क्षमता है?" और  इतना कहकर बाबा चुप हो गये. </p>
<p dir="ltr">उसी रात की बात है. आधी रात को व्यास जी की नींद टूट गयी. कैंची में अपने कमरे के दरवाजे को खोलकर वे बाहर निकल रहे थे कि स्वर्णिम पहाड़ जैसे आकार की एक चमकती हुई आकृति उन्हें दिखाई दी. डर के मारे उन्होंने दरवाजा बंद किया और दौड़कर बिस्तर में लेट गये. </p>
<p dir="ltr">इतने में कमरे में बाबाजी आ गये और उनके शरीर को सहलाते हुए पूछा 'तुम ठीक तो हो?' अब व्यास की जान में जान आई और वे बाबाजी के चरणों में लोट गये. </p>
<p dir="ltr">(रवि प्रकाश पांडे 'राजीदा' द डिवाइन रियलिटी, 2005, दूसरा संस्करण, पेज- 125-126)</p>
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जय जय नींब करौरी बाबा!<br>
कृपा करहु आवई सद्भावा!!<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2Yb-5ptB8kz_qh51OUabMgJeI8GBN4r1w3tZ5soiq3Ma5bSuwLdg9e2KcpfbmkQhupXvkk08lsI49yy-AfzXjSWVg450feYriZcsHGCSb2D6-EhmffeXuTFWgeuo6U0FyQMAjkG3tI2Y/s1600/background.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2Yb-5ptB8kz_qh51OUabMgJeI8GBN4r1w3tZ5soiq3Ma5bSuwLdg9e2KcpfbmkQhupXvkk08lsI49yy-AfzXjSWVg450feYriZcsHGCSb2D6-EhmffeXuTFWgeuo6U0FyQMAjkG3tI2Y/s400/background.png"> </a> </div>Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6249230092551454330.post-18370428722510059772015-07-07T08:02:00.000-07:002015-07-07T08:02:42.438-07:00जलेबी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEvDNnoR6Y4R0DQLPfGTe91uGU6gLK8hMSTspKwILYKOZkHyT10uTx6wVPv_Zni_au-09HPw6b86j7zVpTcDhc9HARjGbYB2MM0FspxzEWpn1GhZrnySnOkQvTu8aH_Z50OD4fbijZfa4/s1600/FB_IMG_1435760643621.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEvDNnoR6Y4R0DQLPfGTe91uGU6gLK8hMSTspKwILYKOZkHyT10uTx6wVPv_Zni_au-09HPw6b86j7zVpTcDhc9HARjGbYB2MM0FspxzEWpn1GhZrnySnOkQvTu8aH_Z50OD4fbijZfa4/s320/FB_IMG_1435760643621.jpg" width="215" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8K0EBDVEyi8Va6pRt57e41c9VcpuSWluTxYVu0D1BJIKi1fYSaqfxt34nLIl-otqiRxwr2xBQM7ZCPEfuCSC8jP3z22sv2k64ty3pzv-QFl_162Id3_MCWLfWpep3EOAf0V3DudF_ADA/s1600/FB_IMG_1435830843640.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8K0EBDVEyi8Va6pRt57e41c9VcpuSWluTxYVu0D1BJIKi1fYSaqfxt34nLIl-otqiRxwr2xBQM7ZCPEfuCSC8jP3z22sv2k64ty3pzv-QFl_162Id3_MCWLfWpep3EOAf0V3DudF_ADA/s320/FB_IMG_1435830843640.jpg" width="320" /></a></div>
एक बार जब हम कैंची जा रहे थे तो रास्ते में भवाली में रुके. उस वक्त मेरी बेटी भी मेरे साथ थी. भवाली में उसने जलेबी खाने की मांग कर दी. लेकिन वहां जलेबी कहीं दिखी नहीं तो मैंने कहा कि ''कैंची पहुंचेगे तो मिल जाएगी."<br />
<br />
लेकिन जब हम कैंची पहुंचे तो पता चला कि आज एकादशी है और उस दिन आश्रम में सिर्फ उबले आलू मिलते हैं.<br />
<br />
लेकिन जब हम महाराज जी के कमरे में पहुंचे तभी आश्चर्यजनक रूप से एक व्यक्ति जलेबी भरी टोकरी लेकर आया. मेरी बेटी की तरफ इशारा करते हुए महाराजजी ने कहा कि "सबसे पहले उस लड़की को दो." वे सब जानते थे.<br />
<br />
(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण, 1995 पेज- 39)<br />
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जय जय नींब करौरी बाबा!<br />
कृपा करहु आवई सद्भावा!!</div>
Sanjay Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com0