कैंची आश्रम में वे एक बहुत सामान्य से कमरे में रहते थे जिसे आफिस कहा जाता था. कमरे में एक खिड़की थी जिसके पल्ले अंदर की तरफ खुलते थे. वे बैठे बैठे कभी कभी खिड़की के पल्ले खोलकर दर्शन देते थे. कई बार कमरे में इस तरह उछलते कूदते थे या अपना चेहरा खिड़की के ग्रिल पर इस तरह लगा देते थे जैसे कोई बंदर पिजड़े में कैद है. कई बार उनके दर्शन के लिए खिड़की के करीब कोई आता तो वे उसे डांटकर खिड़की बंद कर देते थे.
(रामदास, मिराकल आफ लव, (1979) पेज 116
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जय जय नींब करौरी बाबा!
कृपा करहु आवई सद्भावा!!
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