एक बार लखनऊ में महाराजजी ने नगर निगम के कुछ अधिकारियों को साथ लिया और सबसे गरीब मुहल्ले की तरफ सड़क नाली पानी की हालत देखने पहुंच गये। वहां पहुंचकर उन्होंने एक मुसलमान को अपने पास बुलाया और बोले- मुझे भूख लगी है।
मुसलमान ने कहा, लेकिन महाराजजी मेरे पास खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है।
महाराजजी ने कहा, "तूने घर के छप्पर में दो रोटी नहीं छिपा रखी है दुष्ट?"
उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि महाराजजी को कैसे पता चला? वह छप्पर में से दो रोटी निकाल लाया। एक रोटी महाराजजी ने खाई और दूसरी रोटी अधिकारियों को दे दी जिसमें हिन्दू ब्राह्मण भी थे। महाराजजी ने कहा, "प्रसाद लो।"
#महाराजजीकथामृत
(रामदास, मिराकल आफ लव, दूसरा संस्करण, 1995, पेज- 43-45)
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🌺 जय जय नींब करौरी बाबा!! 🌺
🌺 कृपा करहु आवई सद्भावा!! 🌺
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🙏🙏
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